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________________ ३२६ विपाकश्रुते भारियाए' स्कन्दश्रियः भार्यायाः, 'अण्णया कयाई तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं' अन्यदा कदाचित् त्रिषु मासेषु बहुपतिपूर्णेषु 'इमेयारूवे' अयमेतद्रूपः= वक्ष्यमाणस्वरूपः 'दोहले' दोहदः गर्भप्रभावजनितोऽभिलाषः, 'पाउन्भूए' प्रादुभूतः समुत्पन्नः-'धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ ४' धन्याः प्रशंसनीयाः खलु ता अम्बाः, 'कृतपुण्याः खलु ता अम्बाः, कृतार्थाः खलु ता अम्बाः, कृतलक्षणाः खलु ता अम्बाः, तासामम्बानां सुलब्धं जन्मजीवितफलम् , कास्ता अम्बाः ? इत्याकाङ्क्षायामाह-'जाओ णं' इत्यादि। 'जाओ णं बहुहि मित्तणाइणियगसयणसंबधिपरियणमहिलाहिं' याः खलु अम्बाः बहुभिमित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनमहिलाभिः, 'अण्णाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं' अन्याभिश्च चोरमहिलाभिः सार्ध 'संपरिण्डा हाया०' संपरिखताः स्नाताः 'जाच पायच्छित्ता' यावत-कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्ताः, सव्वालंकार विभूसिया' सर्वालङ्कारविभूसिताः 'विउलं' विपुलम् 'असणं पाणं' अशनं पानं 'खाउस स्कंदश्री भार्या को 'अण्णया कया' किसी एक समय जब कि 'तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं' गर्भ पूरे तीन मास का हो चुका था 'इमेयारूवे दोहले पाउब्भूए' इस प्रकार दोहला उत्पन्न हुआ, 'धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ' वे माताएँ धन्य हैं, कृतपुण्य हैं, कृतार्थ हैं, कृत लक्षण हैं, एवं उन्हीं का जन्म और जीवन सफल है कि "जाओ णं' जो निश्चय से 'बहुहि मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं' अनेक मित्रों की, ज्ञाति की, निजजनों की, स्वजनां की, संबंधियों की एवं परिजनों की स्त्रियों के तथा 'अण्णाहि य चौरमहिलाहिं सद्धिं' अन्य चारों की स्त्रियों के साथ२ 'संपरिवुडा' परिवृत होती हुई 'हाया० जाव पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया' स्नानसे, कौतुल, मंगल, एवं प्रायश्चित्त से निवृत्त होकर, तथा समस्त वस्त्र एवं आभूषणों से सुसजित बन कर 'विउलं 'अण्णया कयाई' ३४ मे समय या 'तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं' 0 पू२॥ त्रय भासने ४ गयो त्यारे 'इमेयारूवे दोहले पाउन्भूए' मा प्रमाणे हो। पन्न थयो -'धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ' ते भातामा धन्य छ, पुण्यवान છે, કૃતાર્થ છે, કૃતલક્ષણ છે. અને તેનો જ જન્મ અને જીવન સફળ છે કે– 'जाओ णं' मा निश्चयथी बहूहि मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं 'भने भित्रीनी, ज्ञातिनी, स्वनानी, निनानी, समधीमानी मने परिजनानी सीमे। तथा 'अण्णाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं अन्य व्यारानी स्त्रीच्या साथ साथै 'संपरिखुडा' पीटने 'हाया० जाव पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया' સ્નાનથી કૌતુક, મંગલ અને પ્રાયશ્ચિતથી નિવૃત્ત થઈને, તથા તમામ પ્રકારના વસ્ત્ર તથા भाभूषणथी सम्पूर्ण तयार ने 'विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च ५ आसाए શ્રી વિપાક સૂત્ર
SR No.006339
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages809
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vipakshrut
File Size44 MB
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