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विपाकश्रुते पुढवाए उकोसं तिसागरोवमट्रिइएसु णेरइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे। तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा भारिया जाइणिंदुया यावि होत्था तीए जाया २ दारगा विणिहायमावति ॥ सू० १३ ॥
टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे' ततः खलु स गोत्रासः कूटग्राहः 'एयकम्मे एतत्कर्मा-गवादिहिंसामद्यपानादिक्रियाकारकः, 'एयप्पहाणे' एतत्प्रधाना=गवादिहिंसामद्यपानादितत्परः, 'एयविज्जे' एतद्विद्यः= हिंसादिपापबुद्धिः, 'एयसमायारे एतत्समाचारः गवादिहिंसाविविधमद्यपानाऽऽचरणशीलः, 'सुवहुं पावकम्म' सुबहु पापकर्म 'समजिणित्ता समय॑=उपाजितं कृत्वा, 'पंचवाससयाई' पञ्चवर्षशतानि 'परमाउं' परमायुः उत्कृष्टमायुः ‘पालित्ता'
'तए णं से गोत्तासे' इत्यादि ।
'तए णं' इस प्रकार से गोत्तासे कूडग्गाहे' वह गोत्रास कूटग्राह, 'एयकम्मे' कि जिसका गो-आदि की हिंसा और मद्यपान
आदि क्रिया करना यही एकमात्र कर्तव्य था; 'एयप्पहाणे' इन्हीं क्रियाओं के करने में जो रातदिन तत्पर रहा करता था; 'एयविज्जे' यही एक जिसके जीवन की विद्या थी और 'एयसमायारे' यही गो
आदिकों की हिंसा करना और मदिरा के नशे में धुत रहना ही जिसका एक आचरण बन चुका था: सुबह पावकम्मं समन्जिणित्ता' अनेकविध पापकर्मों का उपार्जन कर 'पंचवाससयाई परमाउं पालइत्ता'
'तए णं से गोत्तासे' त्या.
'तए णं' २ प्रमाणे ' से गोत्तासे कूडग्गाहे' ते गोत्रास यूटयाड, 'एयकम्मे नु गाय माहिनी हिंसा भने मद्यपान २५६ या ४२वी मे सभात्र उत्तव्य तु; 'एयप्पहाणे' जिया। ४२६मारे रात्रि-हिपस तैयार रहेतो तो, 'एयविजे' मे ना पानी मे विधा ती. मने 'एयसमायारे' તે ગાય આદિ પશુઓની હિંસા કરવી અને મદિરા પાનના નશામાં ચકચૂર રહેવું मेर रेनु : माय२५ तु; 'सुबहुं पावकम्मं समन्जिणित्ता' भने विध पा५भानु उपान (भा) ४शने 'पंचवाससयाई परमाउं पालइत्ता' ५०० पांयसे।
શ્રી વિપાક સૂત્ર