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प्रश्नव्याकरणसूत्रे अथ स्थलचरेषु चतुष्पदप्रकारानाह----'कुरंग०' इत्यादि।
मूलम्-कुरंग रुरु सरभ चमर संबर उरब्भ-ससय-पसर-गोण. रोहिय-हय-गय-खर-करभ-खग्ग-वानर.गवय-विग-सियाल-कोलमज्जार-कोलसुणह-सिरिकंदलगावत्त-कोकंतिय--गोकण्ण-मियमहिस वियग्घ-छगल-दीविय-साण-तरच्छ अच्छभल्ल-सल-सीह-चिल्लल-चउप्पय-विहाणाकए य एवमाई ॥सू०७ ॥ ____टीका-कुरंगाः हरिणाः, रुरवो-मृगविशेषाः, सरभाः वन्यपशुविशेषाः विशालकायाः, अष्टापदाः ' परासरे 'ति ख्याताः ये महागजानपि पृष्ठे स्थापयन्ति, चमरा वन्यगावः येषां केशानां चामराणि भवन्ति, संबराः अनेकशाखशङ्गाः द्विखुरा आरण्यपशवः 'सांभर' इति प्रसिद्धाः 'उरभ' उरभ्राः मेपाः, 'ससय' किया करते हैं, तथा इनके सिवाय और भी जो जलचर जीव होते हैंउन्हें भी मार कर ये आनंद मग्न बनते हैं । सू. ६ ॥
अब सूत्रकार स्थलचर तिर्यञ्चों में जो चतुष्पदों के प्रकार हैं उन्हें इस सूत्र द्वारा प्रकट करते हैं-'कुरंगरुरु' इत्यादि । टीकार्थ-(कुरंग) कुरंग हिरणको कहते हैं। (रुरु) रुरु नाम भी मृगका है, परन्तु यह सामान्य मृग से विशेष प्रकार का होता है। (सरभ) सरभ नाम अष्टापद का है । यह शरीर में विशाल होता है । परोसर भी इस का दूसरा नाम है । ये महागजों को भी अपनी पीठ पर बैठा लेता है। (चमर) चमरी गायों का नाम चमर है । इनके बालों के चामर बनते हैं। (संबर) संबर को हिन्दी भाषा में सांभर कहते हैं। इनके सींगो में હિંસા કર્યા કરે છે, અને તે સિવાયનાં બીજાં જે જળચર જ હોય છે, તેમની ५५ इत्या ४२वाम तेभने म मावे छ.॥ सू.-६॥
હવે સૂત્રકાર સ્થળચર તિર્યંચોમાં જે જાનવરેના પ્રકારે છે તેમને આ सूत्र द्वारा प्रकट ४२ छ- "कुरंगहरु" त्याहि. टी -“कुरग" २४ने ४२ ॥ ४ छ. "हरु" २२ ५५५ भृगनी से पास प्रा२ छ. “सरम” सरम मष्टा५४ नमन शीने ४ छ. ते शरी२ वि डाय छ તેનું બીજું નામ પરાસર પણ છે. તે મેટા હાથીઓને પણ પિતાની પીઠ પર मेसाजी री छ. “ चमर” यमरी आयाने यम२ 3 छे. तेमना वालमाथी याभ२ मने छ. “संबर" सरने साम२ ४९ छे. तेना शीमाथी मी०
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર