________________
८७८
प्रश्रव्याकरणसूत्रे इत्यर्थः, तथा 'खते ' क्षान्तः क्षमावान् ' दंते य' दान्तश्च इन्द्रियदमनकारी च, तथा-' हियनिरए ' हितनिरतः आत्मकल्याणपरायण इत्यर्थः, तथा-' इरियासमिए ' ईर्यासमितः, 'भासासमिए ' भाषासमितः 'एसणासमिए ' एषणासमितः ' आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए ' आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमितः 'उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपरिट्ठावणियासमिए' 'उच्चारपासवणखेल सिंघाणसमिए' उच्चारप्रस्रवणश्लेष्मसिङ्घाणजल्लपरिप्ठापनिकास मितः, 'मणगुत्ते । मनोगुप्तः- वयगुत्ते ' वचोगुप्तः, 'कायगुत्ते' कायगुप्तः ' गुतिदिए ' गुप्तेन्द्रियः, • गुप्तवंभयारी ' गुप्तब्रह्मचारी, एषामर्थाः पूर्व व्याख्याताः । तथा वह तत्पर हो जाता है अर्थात् बाह्य और आभ्यन्तर तपों की आराधना वह बहुत अच्छी तरह से किया करता है। (खते) सब जीवों पर वह क्षमाभाव रखता हुआ (दंते) और अपनी इन्द्रियों का दमन करता हुआ ( हियनिरए ) आत्मकल्याण करने में परायण बन जाता है। तथा ( इरियासमिए ) ईयासमिति से युक्त (भासासमिए ) भाषासमिति से युक्त, (एसणासमिए ) एषणासमिति से युक्त (आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए ) आदान भांडमत्रनिक्षेपणा समिति से युक्त तथा (उच्चार पासवणखेलसिंघाणजल्लपरिट्ठावणियासमिए) उच्चारप्रस्रवणखेलसिंघाणजल्लपरिष्ठापनिका समिति से युक्त (मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते ) मनोगुप्ति, वचनगुप्ति कायगुप्ति इन तीन गुप्तियों से गुप्त-रक्षित आत्मप्रवृत्ति वाला बना हुआ ( गुत्तिदिए ) अपनी इन्द्रियों पर पूर्ण अंकुश रखने वाला बन जाता है (गुत्त बंभयारी) ब्रह्मचर्यव्रत की नौ कोटि से सदा रक्षा करने वाला होता है । तथा फिर કે બાહ્ય અને અત્યંતર તપની આરાધના તે બહુ સારી રીતે કર્યા કરે છે. " खंते" ४२४ व ५२ ते समानमा मत “दते” भने पातानी छन्द्रियार्नु भन तो “ हियविरए” मात्मस्या ४२वामा ५२रायण पनी जय छ. तथा “ इरियासमिए" ध्र्या समितिथी युत “ भासासमिए " भाषासमितिथी युत, “ एसणासमिए " मेषाए। समितिथी युत, “ आयाण-भंडमत्तनिक्खेवणासमिए " आहान मां3 भत्र निक्षेप समितिथी युत तथा उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपरिद्वावणियासमिए " या२ प्रखण मेध सिधा परिष्ठ पनि समितिथी युत मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते” भनाशुति વચન-ગુપ્તિ અને કાયગુપ્તિ, એ ત્રણે ગુપ્તિઓથી ગુપ્ત-રક્ષિત આત્મ પ્રવૃત્તિ पाणी मनाने “ गुत्तिदिए " पोतानी छन्द्रियो५२ पूर्ण मधुश रामना२ मनी onय छ. “गुत्तव भयारी" प्रायय प्रतनी नव अटी सही २क्षा ४२ना२
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર