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प्रश्रव्याकरणसूत्रे
तृतीय भावनामाह - ' तइयं ' इत्यादि -
मूलम् - तइयं नारीणं हसिय- भणिय- चिट्टिय- विप्पेक्खिय गइविलासकीलियं विबोइ य नहगीयवाइय सरीर-संठाण वण्णकरचरणनयणलावण्णरूव जेवणपयोधराधरवत्थालंकारभूसणाणि य गुज्झोवकासियाई अण्णाणि य एवमाइयाणि तव संजमबंभचेरघाओवघाइयाई अणुचरमाणेणं बंभचेरं न चक्खुसा न मणसा न वयसा पत्थेयव्वाइं पावकम्माई एवं इत्थीरूव विरइ समिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा आरयमणा विरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते ॥ सू० ८ ॥
टीका- 'तयं' तृतीयां स्त्रीरूप निरीक्षणवर्जनरूपां भावनामाह - 'नारीणं' नारीणां 'हसियमणिय चिडियविप्पेक्खियगविलासकीलियं हसितभणितचेष्टितविप्रेक्षित
'
की कथा कहने का निषेध किया है, क्यों कि ऐसी बातें कामवर्धक हुआ करती हैं, अतः ब्रह्मचारी को अपने ब्रह्मचर्य व्रत में एकदेश अथवा सर्वदेश से बाधक ऐसी कोई भी बात स्त्रियों के बीच में बैठकर नहीं करनी चाहिये । इस प्रकास उस ब्रह्मचारी का व्रत हर समय सुरक्षित बना रहता है | सू०७ ॥
अब सूत्रकार इस व्रत की तृतीय भावना को कहते हैं - ' तइयं नारीणं ' इत्यादि० |
टीकार्थ - ( तइयं ) इस व्रत की रक्षा करने वाली तृतीय भावना स्त्री रूप निरीक्षणवर्जन करने रूप है । इस में ( नारीणं) स्त्रियों के
નિષેધ કર્યા છે, કારણ એવી વાત કામ વક હાય છે, તેથી બ્રહ્મચારીએ પેાતાના ભ્રહ્મચર્ય વ્રતમાં એક દેશથી અથવા સર્વદેશથી ખાધક એવી કાઇ પણ વાત સ્ત્રીઓની વચ્ચે બેસીને કહેવી જોઇએ નહીં. આમ કરવાથી તે બ્રહ્મચારીનું વ્રત સદાકાળ સુરક્ષિત બની જાય છે ! સૂ. છ !!
डुवे सूत्रार आ व्रतनी श्री
भावना मतावे छे. " तइयं नारीणं "त्याहि
टीडार्थ –“ तइयं ” मा व्रतनुं रक्षणु उरनारी त्रील ભાવના સ્ત્રીનાં उप निरीक्षणु खानो परित्याग उखानी छे. तेभां " नारीणं " स्त्रियोनां
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર