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________________ ६७८ प्रश्रव्याकरणसूत्रे वा, विभक्तयः स्वादयस्तिवादयश्च, वर्णाः = कवर्गादयः, एभियुक्तं ' तिकलं' त्रैकाल्यं त्रिकालविषय 'दसविहं पि' दशविधमपि जनपदादिरूपं 'सच्चं' सत्यं वक्तव्यम् । तथा यत्सत्यं जह' यथा-येन प्रकारेण 'भणियं' भणितम्उच्चारितं ' तह य ' तथा च=तेनैव प्रकारेण 'कम्मुणा' कर्मणापि-कार्येणापि परिणतं ' होइ' भवति, तत्सत्यं वक्तव्यमिति भावः, तथा-'दुवालसविहा' द्वादशविधामाकृत संस्कृतमोगधपिशाचसौरसेनोपभ्रंशभेदातू षविधा, सा पुनः गद्यपद्यभेदाद् द्विविधेति द्वादशविधा ' भासा ' भाषा : होइ' भवति, तथा'वयणं पि य' वचनमपि च 'होई' भवति 'सोलसविहं' षोडशविधत्वमेवं विज्ञेयम्अकार आदि शब्द, अथवा षडज आदि स्वर स्वर कहलाते हैं। ‘सु, औ, जस, आदि विभक्तियां तथा 'ति, तस, झी' आदि प्रत्यय ये सब विभक्तियाँ कहलाती हैं, और कवर्ग आदि वर्ग कहलाते हैं। (जहभणियं तह य कम्मुणा होइ) तथा जो सत्य जिस प्रकार से कहा गया है वह सत्य उसी प्रकार से कार्य से भी परिणत हो जाता है ऐसा सत्य बोलना चाहिये। तात्पर्य इसका यह है कि जिस सत्य को, बोलने वाला व्यक्ति कार्य रूप में परिणत कर सके ऐसा सत्य बोलना चाहिये। (दुवालसविहा होइ भासा) माषा वारह प्रकार की होता है-वह इस प्रकार से प्राकृत, संस्कृत, मागधी, पैशाची, सौरसेनी और अपभ्रश । यह छहों प्रकार की भाषा गद्य और पद्य के भेद से बारह प्रकार की हो जाती है। ( वयणं पिय होइ सोलसविहं) वचन के सोलह प्रकार होते हैं, वे इस प्रकार से हैं४१२ मा ५४ अथवा षड्ज माहि १२ने २१२ ४ छ, “सु, औ, जस्" माहि विमतियो तथा “तिप् तसू झी" मा प्रत्यय से सोने वितिय छ । शुभशतीमा मे, ने, थी, ना, नी, नू, ना, मां माविमतिना प्रत्ययो छ) मन ‘क ख' मा वी उपाय छ “जहभणियं तय कम्मुणा होइ" तथा रे सत्य रे मारे ४वायु डाय ते सत्य ते २४ आरे કાર્યમાં પણ પરિણમતું હોય તેવું સત્ય બોલવું જોઈએ, તેનું તાત્પર્ય એ છે કે જે સત્યને બેલનાર વ્યક્તિ કાર્ય રૂપે અમલમાં મૂકી શકે તેવું સત્ય मासन , “दुवालसुविंहा होइ भासा" भाषा ॥२ ४२नी डाय छ તે આ પ્રમાણે છે-પ્રાકૃત, સંસ્કૃત, માગધી, પિશાચી, સૌરસેની, અને અપભ્રંશ આ છ પ્રકારની ભાષા ગદ્ય અને પદ્યના ભેદથી બાર પ્રકારની થઈ જાય છે, "वयणं पिय होइ सोलसविहं" क्यनना से प्र४२ डाय छे, ते नाथे प्रमाणे छे. શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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