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________________ ૬૭૬ प्रश्रव्याकरणसूत्रे निपाताः = अर्थद्योतकाः खलु इबादयः, उपसर्गाः = प्रपरायः तद्धिता:= अपत्याद्यर्थाभिधायकप्रत्ययान्ताः शब्दाः, यथा - ना मेरपत्यंनाभेयः ऋषभः, सिद्धार्थस्यापत्यं सैद्धार्थो महावीरः ' इति । समासः = अनेकपदानामेकीकरणम् स चाव्ययीभावादिभेदादनेकविधः, सन्धिः वर्णान्तं संधां नाम्, यथा 'श्रावकोऽत्रे - त्यादि, " 6 9 आ विशेषता के द्योतक जो होते हैं वे निपात हैं जैसे खलु इव आदि शब्द, प्र, परा आदि उपसर्ग कहलाते हैं । इनके संबंध से एक ही धातुके अर्थ में भिन्नता आ जाती है, जैसे 'हृ' धातु के साथ जब 'प्र' उपसर्ग का संबंध होता है -तब उसका अर्थ प्रहार हो जाता है, और जब का संबंध होता है तब आहार हो जाता है, इत्यादि । अपत्य आदि अर्थ के अभिधायक जो प्रत्यय है वे प्रत्यय वाले शब्द यहां तद्विन शब्द से गृहीत हुए हैं जैसे- " नाभेः अपत्यं पुमान् नाभेयः " यहां नाभि शब्द से तद्धित प्रत्यय होने पर नाभेय बनता है तथा सिद्धार्थ शब्द से अणू प्रत्यय होने पर 'सैद्धार्थ' बनता है, ये तद्धित शब्द हैं। इसी प्रकार और भी तद्धित शब्द जान लेना चाहिये । परस्पर संबंध रखने वाले दो वा दो से अधिक पदों की बीच की विभक्ति का लोप करके मिले हुए अनेक पदों का नाम समास है । समास अव्ययी भाव आदि के भेद से अनेक प्रकार का होता है । संधि शब्द का अर्थ मेल होता है - अर्थात्-वर्णों की 97 66 66 પ્રહાર 66 आ " ३५ मने भवति (छे ). ने शम्हो अर्थमां विशेषताने हर्शावे छे तेभने निपात हे छे. भ " माहि शब्द. खलु इव " " प्र " परा " माहि ઉપસર્ગી છે. તેમના ઉપયાગથી એક જ ધાતુના અર્થમાં ફેર પડી જાય છે, भडे" ," हृ ધાતુ સાથે જ્યારે “ દ્ર ” ઉપસ મૂકવામાં આવે છે ત્યારે तेनो अर्थ " ” થઈ જાય છે, અને જ્યારે તેની આગળ સ મૂકવામાં આવે ત્યારે તેને અર્થ “ આહાર થઈ જાય છે, અપ્રત્ય આદિ અને દર્શાષનાર જે પ્રત્યયા છે તે પ્રત્યયવાળા શબ્દોને અહીં तद्धित " शब्दथी उहेल छे, प्रेम -" नामेः अपत्यं पुमान् नाभेयः " " नाभि" शब्हने તષ્ઠિત પ્રત્યય લાગવાથી " नाभेय " શબ્દ ખન્યા છે, તથા 'सिद्धार्थ ' शहने 'अण्' प्रत्यय लागता " सौद्धार्थ " भने छे, ते तद्धित शब्दो छ 66 આ પ્રકારે જ ખીા તદ્ધિત શબ્દો પણ સમજી લેવા પરસ્પર સંબંધ રાખનાર એ કે એથી વધારે પદોની વચ્ચેની વિભક્તિના લેપ કરીને જોડાયેલાં અનેક પદાને સમાસ કહે છે. અન્યયી ભાવ આઢિ ભેદથી સમાસ અનેક પ્રકા२ना छे, 'स ंधि' शब्दनो अर्थ 'लेडाणु' थाय छे भेटते हैं वर्णानी यति શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર 66
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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