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________________ सुदर्शिनी टीका अ०२ सू० २ सत्यस्वरूपनिरूपणम् विद्याचारणादीनां श्रमणानां च सिद्धविद्या-आकाशगामिनी वैक्रियादि रूपा च यस्मात्तत्तथोक्तम् , तथा-' मणुयगणाणं' मनुजगणानां 'वंदणिज्ज' वन्दनीयं= स्तवनीयम् , तथा-' अमरगणाणं' अमरगणानां देवानाम् 'अच्चणिज्ज' अर्चनीयम्-सत्कारयोग्यम् , तथा- ' असुरगणाणं च' असुरगणानां च 'पूयणीयं' पूजनीयं-प्रशंसनीयम्, तथा 'अणेगपाखंडिपरिग्गहियं ' अनेकपाखण्डिपरिगृहीतम् अनेकधर्मानुयायीभिरपि स्वीकृतं 'जं' यत्सत्यं ' तं' तत् 'लोकम्मि' लोके ' सारभूयं ' सारभूतं= सारभूतं सर्वप्रधानत्वात् पुनस्तत्सत्यं कीहशम् ? इत्याह- गंभीरयरं महासमुद्दामो' गंभीरतरं महासमुद्रात् , अक्षोभ्यत्वात् , तथा-'थिरयरगं मेरुपव्ययामो' स्थिरतरक मेरुपर्वतात्-निश्चलत्वात् , तथा'सोम्मयरगं चंदमंडलाओ' सौन्यतरकं चन्द्रमण्डलात्-संतापशमनहेतुत्वात् , तथा-'दित्तयरं सूरमंडलाओ' दीप्ततरं सरमण्डलात् यथावद्वस्तु प्रकाशकत्वात् , मिनी विद्या की तथा श्रमणों कों वैक्रियादिरूप विद्याओं-लब्धियों कीसिद्धि होती है। (मणुयगणाणं वंदणिज्ज) मनुष्यों के लिये यह सत्य वंदनीय है, (अमरगणाणं अच्चणिज्ज) अमरगणों के लिये यह अर्चनीय है, तथा (असुरगणाणं पूणिज्ज) असुरगणों के लिये यह पूजनीय प्रशंसनीय है (अणेगपाखंडिपरिग्गहियं) अनेक धर्मानुयायियों ने भी इसको स्वीकार किया है। (जं तं लोगम्मि सारभूयं ) ऐसा यह सत्यव्रत लोकमें सर्वप्रधान होने से सारभूत है। ( गंभीरयरं महासमुदाओ) यह सत्य अक्षोभ्य होने से महासमुद्र की अपेक्षा अत्यंत गंभीर है। (थिरयरं मेरुपचयाओ) निश्चल होनेसे मेरुपर्वत की अपेक्षा अत्यंत स्थिर है ( सोम्मयरगं चंदमंडलाओ) संताप के शमन का हेतु होने से चंद्रमंडल की अपेक्षा अत्यंत सौम्य है। (दित्तयरं सूरमंडलाओ ) यथावत् वस्तु का प्रकाशक होने से यह सत्य सूर्य मंडल की अपेक्षा अधिक वैस्या३५ विधायी-सन्धिमानी प्राप्ति थाय छे. "मणुयगणाणं वदणिज्ज" भनुष्याने भाटे मा सत्य हनीय छ तथा “ असुरगणाणं पूणिज्ज" सुरगणाने भाट त पूछनीय-प्रशसनीय छ. “ अणेगपाखंडि परिग्गहिय" मन धर्भाना अनुयायीमा ५५ तनी २वी४२ - छ, “ तं लोगम्मि सारभूयं" से । सत्यवत सभा स प्रधान पाथी सारभूत छे. “ गंभीरयर महासमुद्दोओ” 24॥ सत्य माल्य पाथी समुद्र ४२तां ५५ पधारे गलीर छ. थिरयर मेरूपव्वयाओ" निश्चय हवाथी ते भेरुपत ४२di पर वधारे स्थि२ छ. “ सोम्मयरगं चंदमंडलाओ” सतापर्नु शमन ४२ना२ डापाथी चन्द्र. भ७४२di ५५ पधारे सौम्य छ. “ दित्तयर सूरमंडलाओ” वस्तुना साया સ્વરૂપનું પ્રકાશક હોવાથી આ સત્ય સૂર્યમંડળ કરતાં પણ વધારે સ્થિર છે. શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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