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________________ ६०४ प्रश्नव्याकरणसूत्रे तिनिमित्ता या दकाया तस्या अर्थ प्रयोजनं तस्मै, ' इमं च ' इदं च-वक्ष्यमाण 'सुद्धं ' शुद्धं-निर्दोषं ' उंछं' उच्छं-स्तोकं स्तोकं ग्रहणरूपमशनादिकं 'गवेसय. व्वं ' गवेषितव्यम् , यथा-लूनानक्षेत्रात्कणादानं तथैव साधुनाऽपि गृहस्थार्थ निष्पादितमन्नादिकस्तोकं स्तोकं गवेषणीयमिति भावः । कीदृशम्-उच्छं गवेषितव्यम् ? इत्याह-'अकयं ' अकृतं साधु निमित्तमनिष्पादितम् , ' अकारियं' अकारितम्-अन्यद्वारा न कारितम् , तथा-'अणाहूयं ' अनाहूतम्-गृहस्थेन साधोरनिमन्त्रणपूर्वकं दीयमानम् , ' अणुद्दिढे ' अनुद्दिष्टम् औंदेशिकादि दोपवर्जितम् , तथा-'अकीयकडं' अक्रीतकृतं-साधूनां कृते मूल्येनानिष्पादितम् । एतदेव वर्णयन्नाह-'नवकोडोहिं नवकोटिभिः, न हन्ति १, न घातयति २, घ्नन्तं प्रयोजन के लिये ( इमं च ) इस वक्ष्यमाण (सुद्धं उंछं गवेसियव्वं ) शुद्ध-निर्दोष, आहोर आदि की उछ थोड़े २ रूप में गवेषणा करना चाहिये, अर्थात् जिस प्रकार काटे गये खेत से कणों का आदान किया जाता है उसी प्रकार साधु को गृहस्थ ने अपने लिये बनाये हुए भोजन आदि में से थोड़ी थोड़ी मात्रा में उसके यहां से आहार आदि लेना चाहिये। आहारादि ( अकयं ) साधु के निमित्त उसने नहीं बनाया हो और (अकारियं ) न दूसरों से उसने बनवाया हो (अगाइयं ) बुलाकर-अर्थात्-निमंत्रण करके जो न दिया जाय, (अणुद्दिटुं) औद्देशिक आदि दोषों से जो वर्जित हो, तथा (अफीयकडं ) साधुओं के निमित्त मूल्य देकर जो नहीं खरीदा गया हो तथा (नव कोडिहिंपरिसुद्धं ) नवकोटियों से अर्थात् नौ प्रकार से जो परिशुद्ध हो, अर्थात् जिस आहार में साधु के निमित्त जीवों की हिंसा नहीं हुई हो, न भाटे (इमं च ) इसवक्ष्यमाण, (सुद्धं उछ गवेसियव्वं) शुद्ध, निर्दोष माहार આદિની થોડા થોડા પ્રમાણમાં ગવેષણ કરવી જોઈએ, એટલે કે જેમ લાયેલ ખેતરો માંથી કણાનું આદાન કરાય છે, એ જ પ્રમાણે સાધુએ, ગૃહસ્થ દ્વારા પિતાને માટે બનાવાયેલ ભેજન આદિમાંથી થોડાં થોડાં પ્રમાણમાં આહાર माहिसेवन. तेथे ते मारा (अकयं) साधुने माट मनाव्या हवi नध्य नही, अने ( अकारियं) भीनी पासे मना१२व्या व २ नही. (अणाहुयं) मासावीने मेटसे ते निमत्रीन ? न माय. ( अणुटूि) मोहशि माह होषाथी २ २हित डाय, तथा (अकीयनडं ) साधुने मोटे भूत्य साधीन ते मरोहाये न हाय, त१ ( नवकोडिहि परिसुद्धं ) 14 टीम। વડે-નવ પ્રકારે જે પરિશુદ્ધ હોય, એટલે કે તેણે સાધુને નિમિત્તે બીજા પાસે હિંસા શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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