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________________ सुर्शिनी टीका अ०१ सू० २ प्रथमसंवरद्वारनिरूपणम् ५६३ बन्धनेभ्यो यया सा तथोक्ता,-सकलवधवन्धनविमोचकत्वात् १२, ‘खत्ती' क्षान्तिः क्रोधादिनिग्रहकारकत्वात् १३, 'सम्मत्ताराहणा' सम्यक्त्वाराधना सम्यक्वं-सम्यग्बोधरूपमाराध्यते यया सा तथोक्ता,-जिनशासनाराधनकारणत्वात् १४, ' महई ' महती सर्वधर्मानुष्ठानश्रेष्ठत्वात् १५, 'बोही' बोधिः-सर्वज्ञीक्तधर्मप्राप्तिरूपत्वात् १६, 'बुद्धी' बुद्धिः, परदुःखावबोधकत्वात् १७, ‘धिई' धृतिः, म्रियमाणजीवस्याभयप्रदायकत्वात् , यद्वा-धृतिश्चित्तदाढर्यम् , अहिंसया चित्ते दाढयस्य समुत्पद्यमानत्वात् १८, 'समिद्धी' समृद्धिः, आनन्दजनकत्वात् इसलिये प्राणीयों की सकल वध बन्धनों से विमोंच का होने के कारण इसका नाम (विमुत्ती ) विमुक्ती है १२ । यह समस्त क्रोधादि कषायों की निग्रह कारिका है इसलिये इसका नाम ( खंती) क्षान्ति है १३ । सम्यक् बोधरूप सम्यक्त्व इसके होने पर ही आराधित होता है, अर्थात् यह जिनशासन की कारण होती है इसलिये इसका नाम (सम्मत्ताराहणा) सम्यक्त्वाराधना है १४ । धर्मके समस्त अनुष्ठानों में यह श्रेष्ठ है इसलिये इसका नाम ( महती ) महती है १५। सर्वज्ञप्रतिपादित धर्मकी प्राप्तिरूप होने से इसका नाम ( बोही ) बोधि है १६ । परदुःखों की अवबोधिका होने से, अर्थात् परकीय दुःखों को बतलाने वाली होने से इसका नाम (बुद्धी) बुद्धि है १७ । मरते हुए जीवों को इसके प्रभाव से अभय की प्राप्ति होती है इसलिये इसका नाम (धिई) धृति है । अथवा-धृति शब्द का अर्थ चित्त की दृढता है, सो अहिंसा से चित्त में दृढ़ता उत्पन्न होती है यह बात निर्विवाद है १८ । आनन्द तेनु नाम “विमुत्ती" विभुति छ, (१२) ते समस्त धाडि पायोनी निड ४२नारी छ, 'तथी तेनु नाम “ खंती " शान्ति छ. (१३) सभ्यमाध રૂપ સમ્યકત્વ તે વિદ્યમાન હોય તે જ આરાધાય છે, એટલે કે તે જિનશાसननी माराधनान ४२४३५ य छ तेथी तेनु नाम “सम्मत्ताराहणा" સમ્યકત્વારાધના છે. (૧૪) ધર્મના સમસ્ત અનુષ્ઠાનેમાં તે શ્રેષ્ઠ છે તેથી તેનું नाम “ महती” भडती छ (१५) सव' प्रतिपादित धमनी प्राप्ति३५ पाथी तेनु नाम “ बोही" माथि छे. (१६) ५२: मानी समाधि पाथी मेटले है पा२४ मे मतानारी पाथी तेनु नाम "बुद्धी” मुद्धि छ (१७) भरत ७वाने तेन प्रभावी मलयन प्राप्ति थाय छ, तेथी तेनु नाम “धिई" ધતિ છે. અથવા ધતિ શબ્દનો અર્થ ચિત્તની દઢતા છે. તે અહિંસાથી ચિત્તમાં દઢતા ઉત્પન્ન થાય છે તે વાત નિર્વિવાદ છે. (૧૮) આનંદની જનક હેવાથી શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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