SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे सदृशी-प्रधानशङ्खतुल्या च ग्रीवा यासां तास्तथा 'मंसलसंठियपसत्थहणुया' मांसलसंस्थितमशस्तहनुकाः % मांसल:-पुष्टः संस्थितः = सुसंस्थानयुक्तः आम्रफलाकारः प्रशस्तः सुन्दरो हनुः ओष्ठाधोभागो यासां तास्तथा । 'दालिमपुप्फप्पगासपीवरपलंबकोचिय वराधरा = दाडिमपुष्पप्रकाशपीवरमालम्बवराधराः तत्र-दाडिमपुष्पपकाशः = दाडिमपुष्पसमप्रभो रक्त इत्यर्थः, पीवरः = पुष्टः प्रालम्बः = ईषल्लम्बमानः कुञ्चितः = वलितः वरः = प्रशस्तोऽधरो यास तास्तथा' सुंदरोत्तरुट्ठा' सुन्दरोत्तरोष्ठा-सन्दरउत्तरोष्ठउपरितन ओष्ठो यासां तास्तथा दधिदगरयकुंदचंदवासंतिमउलअच्छिद्दविमलदसणा' दधिदकरजः कुन्दचन्द्र वासन्तीमुकुलाछिद्रविमलदशनाः तत्र-दधिदकरजः = जलबिन्दुः कुन्दः= पुष्पविशेषः चन्द्रः प्रतीतः वासन्तीमुकुल: वासन्तीनामक पुष्प कुड्मलश्च इत्येतैः सदृशाः शुक्लाः अछिद्राः अविरलाः सुमिलिता दशनाः दन्ताः यासां तास्तथा ' रत्तुप्पलरत्तपउमपत्तसुकुमालतालुजीहा' रक्तोत्पलरक्तपद्मपत्रसुकुमारतालुजिह्वाः सरिसगीवा ) इनकी गर्दन चार अंगुल की तथा प्रधान-उत्तम शंख के जैसी होती है । ( मंसलसंठियपसत्थहणुया ) इनके ओष्ठ का अधोभाग रूप दाढी मांसल-मजबूत पुष्ट, संस्थित-आम्र फल के जैसी सुन्दर आकार वाली और प्रशस्त-सुहावनी होती है। (दालिमपुप्फप्पगासपीवरपलंबकोचियवराधरा) इनका अधरोष्ठ दाडिम-अनार के पुष्प के समान लाल वर्ण वाला होता है। पीवर-मांसादि से भरा हुआ होने के कारण पुष्ट होता है। तथा प्रालम्ब-कुछ २ लम्बासा रहता है । कुश्चितवलित एवं प्रशस्त होता है। ( सुंदरोत्तरुट्टा ) जिनके ऊपर का ओष्ठ सुन्दर होता है। (दधिदगरयकुंदचंदबासंतिमउलअच्छिद्दविमलदसणा) इनके निर्मल दांत-दही, जलबिन्दु, कुंदपुष्प, चन्द्र, वासन्ती पुष्पकी कली, इनके जैसे शुभ्र होते हैं । विरले नहीं होते हैं किन्तु अविरलपरस्पर में मिले हुए रहते हैं। (रत्तुप्पलरत्तपउमपत्तसुकुमालतालुजीहा) यार मांगनी तथा उत्तम A12वी हाय छे. “ मंसल संठियपसत्थहणुया" તેમના હોઠના નીચેના ભાગરૂપે દાઢી માંસલ મજબૂત, સંસ્થિત–આમ્રફળના २ सुह२ मारवाजी मने प्रशस्त सुव२ डाय छे. “दालिमपुफापगासपीवरपलं बको चियवराधरा" भने। अध।४ हाउमा ३८ सास गनी, પુષ્ટ, તથા સહેજ લંબાયેલા રહે છે. તે અધરેષ્ઠ કુંચિત-વલે અને उत्तम होय छ “सुंदरोत्तरुद्रा" तमना ५२ सुद२ डाय छे. “दधिदगरयकुंदचंदवास तिमउलअच्छिद्धविमलदसणा” तमना निमiत रही, જળબિંદુ, કુંદપુષ્પ, ચન્દ્ર અને વાસન્તી પુષ્પની કળી, જેવા સફેદ હોય છે. તે દાંત છૂટા છૂટા હતાં નથી પણ પરસ્પરમાં મળીને આવેલા હોય છે. " रतुप्पलरत्तपउमपत्त सुकुमालतालुजीहा ” तेभर्नु तng मने म ala શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy