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________________ ४७४ प्रश्नव्याकरणसूत्रे मात्रिक पीनरतिदपा:-मितौ-मानोपेतौ मात्रिको परिमाणसम्पन्नौ पीनौ-सुपुष्टौ रतिदौ - रमणीयौ पावभागौ यासां तास्तथा ' अकरंडुयकणगरुयगनि म्मल सुजायनिरुवहयगायलट्ठी ' अकरण्डुककनकरुचकनिर्मलसुजातनिरुपहत गात्रयष्टयः तत्र अकरंडुका = पुष्टत्वादनुपलक्ष्यपृष्ठपार्थाद्यस्थिकाः, तथा कनकरुचकनिर्मला = सुवर्ण समानकान्तिमतीसुजाता निरुपहता = रोगरहिता च गात्रयष्टि र्यासां तास्तथा ' कंचणकलसप्पमाणसमसंहितलठ्ठचूचुय आमेलग जमल जुयल वट्टियपओहराओ' काश्चनकलशप्रमाणसमसंहितलष्टच्चकाऽऽमेलक यमलयुगलवर्तितपयोधराः-तत्र काश्चनकलशप्रमाणौ उन्नतत्वेन वर्तुलत्वेन च सुवर्ण घटाकरौ समौन्तुल्यौ संहितौ-अनिपतितत्वेनाऽशिथिलौ लष्टचूचका मेलको-मनोहरकृष्णस्तनमुखशिखरे यमलौ-सहोत्पन्नौ युगलौ-युग्मौ वर्तितौ वर्तुलौ पयोधरौ= स्तनौ यासां तास्तथा 'सुयंगअणुपुव्यतणुयगोपुच्छवट्टसमसंहियनामिय आदेइयपीणरइयपासा ) इसीलिये उनके वे दोनों पार्श्वभाग मित-मान से युक्त, मात्रिक-प्रमाणसंपन्न, पीन-सुपुष्ट एवं रतिद-रमणीय लगते हैं। ( अकरंडयकणगरुयगनिम्मलसुजायनिरुवहयगायलट्ठी) पुष्ट होने के कारण उनकी न तो पीठकी हड्डियां दिखती है और न दोनों पार्श्वभागों की। इनका शरीर सुवर्ण के समान कान्तिवाला एवं रोगरहित होता है । ( कंचणकलसप्पमाण समसंहितलटुचूचुय आमलग जमलजुयलवट्टिय. पयोहराओ) इनके दोनों स्तन उन्नत और गोल होने के कारण सुवर्णनिर्मित घट के आकार जैसे होते हैं-कमती बढती नहीं । संहित अशिथिल होते हैं । नीचे की ओर झुके हुए नहीं रहते साम्हने उठे हुए रहते हैं । इनके दोनों चूचुक मनोहर एवं अत्यंत काले मुखवाले होते हैं। ये साथ २ उत्पन्न होते हैं । गोल रहते हैं, ( भुयंग अणुपुव्वतणुयरइयपासा" ते ४ाणे तेमनी पन्ने क्षी। भितमात्रि सप्रमाण, पीन-सुपुष्ट अने रतिद-२मणीय वागे. छ. "अक दुयकणगरुयगनिम्मल सुजाय निरुवहयगायलद्री" તે પુષ્ટ હોવાને કારણે તેમની પીઠનાં હાડકાં દેખાતાં નથી અને છાતીના હાડકાં પણ દેખાતાં નથી, તેમના શરીર સુવર્ણની જેવી કાંતિવાળાં અને નીરોગી डाय छे. “ कंचण कलसप्पमाणसमसहितलट्ठचूचुयआमेलगजमलजुयलवट्टिय पयोहराओ' तमना भन्न स्तन गण मन उन्नत जापाने २१, सोनाना ઘડા જેવા લાગે છે, બને સ્તન બરાબર સરખા હોય છે-નાના મોટા હતા नथी,, संहित-मशिथिस डाय छे. नीयनी मान् नभता २डतां नयी ५५५ ઉન્નત હોય છે. તેમની બને ડીંટીઓ મનોહર અને અત્યંત શ્યામ મુખવાળી હોય છે. તે બને સાથે જ ઉત્પન્ન થાય છે અને ગોળાકારનાં હોય છે. શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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