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________________ सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० ३ पञ्चमान्तरिगततस्करस्वरूपनिरूपणम् २७१ टीका-'तं पुण' तत् पुनः 'चोरियं' चौर्य 'करेंति' कुर्वन्ति 'तकरा' तस्कराः। कथंभूताः ? इत्याह--' परदव्वहरा' परद्रव्यहराः परेषां द्रव्याणि हरन्ति ये ते परद्रव्यहराः 'छेया' छेका:चौर्यकर्मनिपुणाः तथा 'कयकरणलद्धलक्खा' कृतकरणलब्धलक्षाः कृतकरणा:=पुनःपुनः कृतचौर्यानुष्ठानास्ते च ते लब्धलक्षाः= चौयकर्मावसरज्ञास्ते तथा 'साहसिया' साहसिकाः परद्रव्यहरणे मनोबलयुक्ताः, 'लहुस्सगा' लघुस्वकाःतुच्छात्मानः ' अइमहिच्छा' अतिमहेच्छा=अतिशयिता महती-प्रगाढा इच्छा-तृष्णा येषां ते अतिमहेच्छा=महाभिलाषिणः, 'लोभघत्था' लोभग्रस्ताः = लोभग्रथितान्तःकरणाः 'दहरओवीलगा' दर्दराऽप्रवीडकाः = वचनाटोपेन स्वात्मप्रच्छादकाः, तथा 'गेहिया' गृद्धिकाः परद्रव्यलोलुपाः हैं-' तं पुण' इत्यादि। टीकार्थ-(तं पुण चोरियं तकरा करेंति) इस चौर्य कर्मको चोर करते हैं (परदव्वहरा ) ये चोर परद्रव्य को हरण करने वाले होने के कारण परद्रव्य हर कहे जाते हैं (छेया) चोर अपने चौर्यकर्म में निपुण होते हैं (कयकरणलद्धलक्खा ) बार २ चोरी करते रहनेसे ये चौर्य कर्मके अवसर के ज्ञाता होते हैं (साहसिया) परद्रव्य के हरण करने में इनका मानसिक बल बहुत बढा चढा रहता है । ( लहुस्सगा) इनकी आत्मा अतितुच्छ होती है । तथा पर के द्रव्य को अपहरण करने में इनकी (अइमहिच्छा) महती लालसा रहती है, इसलिये महा इच्छा वाले हैं ( लोभघत्या ) ये लोभ से बहुत अधिक ग्रसित अन्तःकरण वाले होते हैं। (दद्दरओवीलगा) इनके बोलने की पद्धति कुछ ऐसी होती है कि जिससे ये देखने वालों को सहसा चोर रूप में भासित नहीं होने पाते हैं। (गेहिया ) "तं पुण” त्याहि. टीथ-"तं पुण चोरिय तक्करा करे ति” । यारीनु कृत्य २२ सोही ४२ छ. “परदव्वहरा” ते था। मीनू द्रव्य उरी सेना२ उपाथी तभने ५२द्रव्य ३२ वामां आवे छे "छेया" या पोताना यारी ४२वाना अर्यमा निपुण डाय छे. "कयकरण लद्धलक्खा" वा२१।२ योरी ४२ता २ छ तथा तेसो यारी ४२वाना मसन १९१२ डाय छे. “साहसिया ” अन्यनु द्रव्य हरी सेवामा तेभनु मानसि ५७ धारा १ तीन डाय छे. " लहुस्सगा” तेमनी मात्मा અતિશય તુચ્છ હોય છે, તથા બીજાના દ્રવ્યનું અપહરણ કરવાની તેમની " अइमहिच्छा" अतिशय साससा डाय छे, तेथी तेसो भनछााण छ. " लोभघत्था" ते सोमथी अतिशय पधारे १४४येei मत:४२११ पा डाय छ. “ ददरओवीलगा" तेमनी मालवानीशत सेवी डाय रथी तय। तेभने नारनी न०४२ ही यो२ ३थे माता नथी. “ गेहिया" શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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