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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० २ अदत्तादाननामनिरूपणम्
२६७ कर्मबहुलस्य-तत्र पापं-माणातिपातादिकं कलिः=युद्धं कलुषाणि-मलिनानि कर्माणि-मित्रद्रोहादिव्यापाररूपाणि बहुलानि-बहूनि यत्र तत्तथा तस्य ' आदिण्णादाणस्स' अदत्तादानस्य 'एयाणि ' एतानि पूर्वोक्तप्रकाराणि 'एवमाईणि' एवमादीनि
चौरिक्यादीनि 'तीसं' त्रिंशत् 'नामधेज्जाणि हुंति' नामधेयानि भवन्ति ।।०२। प्राणातिपातादिक पाप, युद्ध, मित्रद्रोह आदिरूप मलिनकर्म अधिकता से रहते हैं ( अदिण्णादाणस्स) अदत्तादान के ( एयाणि एवमाईणि ) ये चोरी आदि (तीसं) तीस (नामधेनाणि ) नाम (हुति ) है । ___ भावार्थ-चोरी चोरों का कर्म है इसलिये अदत्तादान का नाम चौरिक्य है १ । चोरी करने वाला विना पूछे ही दूसरों के द्रव्य का हरण करते हैं इसलिये इसका नाम परहृत है २। चोरों को कोई बुलाकर अपना द्रव्य नहीं देता है इसलिये इसका नाम अदत्त है ३ । निर्दय बनकर ही यह कर्म किया जाता है सदय होकर नहीं, इसलिये इसका नाम करिकृत है ४ । इसमें दूसरे के द्रव्य का लाभ होता है अतः यह पर लाभ कहा जाता है ५ । इस कृत्य में न इन्द्रिय संयम रहता है और न प्राणि संयम ही, अतः यह असंयम नाम से कहा गया है ६। इसमें परधन में गृद्धि होती है अतः इसका नाम परधनगृद्धि है ७। इसमें परिणामों में लोलुपता अधिक रहती है इस लिये इसका नाम लौल्य है । तस्करों का यह भाव है इसलिये इसका नाम तस्करता है ९। इसमें दाणस " महत्तहीनता “ एयाणि एवमाईणि" ते यारी माहि“ तीसं" त्रीस " नामधेज्जाणि" नाम “ हुँति"छ,
ભાવાર્થ-(૧) ચિોરી કરવી તે ચોર લોકેનું કાર્ય છે. તેથી અદત્તાદાનનું “चौरिक्य' नाम छ. (२) योरी ४२नापूछ्या विना २४ मीनi द्रव्यर्नु ३२६४ ४२ छ, तेथी तेनु नाम “परहत' छ (3) थोराने मोसावीने छ पातानु द्रव्य हेतुं नथी, तेथी तेनु नाम “अदत्त" छ. (४) निय मनीन । यारी ४२राय छ, सय ४ने नही, भाटे ४ तेनु नाम “क्रूरिकृत” (५) तेमा wilmना द्रव्यने। दाल (प्राप्ति) थाय छ, तथा तेने “लाभ” हेवामा माछ. (૬) આ કૃત્ય કરતી વખતે ઇન્દ્રિયોને સંયમ રહેતું નથી અને વાણી सय ५४ २२तो नथी. तेथी तेनु नाम "असंयम” छ.(७) ते ४२ना२ने ५२धनमा द्धि- सा थाय छे, तेथी तेनु नाम “ परधनगृद्धि” छे. (८) તેનાથી પરિણામોમાં–વૃત્તિમાં લુપતા વધારે પ્રમાણમાં રહે છે, તેથી તેનું नाम" लौल्य" छ. (८) तोशनी ते वृत्ति लावना य छे, तेथीतेनु नाम
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર