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________________ २३८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे नतया हतो दुष्टः, अत्र संभ्रमे द्वित्वम्' तथा 'सुडु छिन्नो भिन्नो' सुष्टु छिन्नो भि नश्च स दुजनेन इति पूर्वोक्तप्रकारैः 'उबदिसंता' उपदिशन्तः कथयन्तः ‘एवं विहं' एवंविधं-स्वरूपतः सत्यमपि पाणिनां हिंसाकारणत्वात् परिणामतोऽलीकं 'मणेणं वायाए कम्मुणा य ' मनसा-वचसा कर्मणा च त्रिधा 'अलीय' अलीकम्= असत्यं ' करेंति ' कुर्वन्ति भाषन्ते इत्यर्थः, कीदृशास्ते अलीकभाषिणः ? इत्याह ' अकुसला' अकुशलाः भाषासमितिविकलाः ' अणज्जा' अनार्याः=म्लेच्छाः कुछ भी दान मत दो। ( सुदुहओ सुद्दछिण्णो भिण्णिोत्ति) ' तुमने उस दुष्ट को अच्छा मारा, बहुत अच्छा किया जो उसे छिन्न भिन्न कर डाला । (त्ति ) इस पूर्वोक्त प्रकार से ( उवदिसंता) दूसरों के प्रति कहते हुए मृषावादी जन (एवं विहं ) यद्यपि स्वरूप की अपेक्षा अपने वाच्यार्थ से संबंधित होने के कारण-सत्य होने पर भी प्राणि हिंसा के कारण होने से असत्यवाणी को (मणेणं वायाए कम्मुणा ) मन से, वचन से और काय से, (अलियं करेंति) अलोक-झूठ बोला करते हैं। तात्पर्य इसका यह है कि अपने अभिधेय(वक्तव्य)से असंबंधित वाणी ही मृषा. स्वरूप नहीं है किन्तु जिस सत्यवाणीसे पर प्राणियोंको कष्ट हो आपत्तिमें पड़ जाना पड़े उनके प्राणों की हिंसा आदि हो जावे वह वाणी भी असत्य ही है। ऐसी वाणी केवल वचनयोग की अपेक्षा से ही असत्यरूप नहीं मानी जाती है किन्तु वह मन और काय इन अंगोंकी अपेक्षा भी असत्य मानी जाती हैं । इस तरह की असत्यवाणी का जो (अकुसला) ने ५ ६ ५५४ हान - साप! " सट्ठहओ सुहुछिण्णो भिण्णोत्ति" " तमे તે દુષ્ટને માર્યો તે ઠીક કર્યું, તેને છિન્ન ભિન્ન કરી નાખે તે ઘણું સારું ज्यु " ":त्ति” ! पूति ॥२ “ उवदिसंता” भीतने ४ ते असत्य मासना। सोही “ एवं विहं " २१३५नी अपेक्षा पोताना पाया સાથે સાથે સંબંધિત હોવાને કારણે સત્ય હોવા છતાં પણ પ્રાણી હિંસાના १२६५ ३५ पाथी मसत्यवाहीन “ मणेणं वायाए कम्मुणा” भनथी, क्यनथी भने यथा “ अलियं करेति ” मसी8-मसत्य माल्या ४२ छ- तेनु तात्प એ છે કે પિતાના અભિધેયથી અસંબધિત વાણી જ મૃષાવાદ રૂપ નથી પણ જે સત્ય વાણીથી બીજા પ્રાણીઓને કષ્ટ થાય, આપત્તિમાં મૂકાવું પડે, તેમનાં પ્રાણેની હિંસા આદી થાય, તે વાણી પણ અસત્ય જ છે. એવી વાણી કેવળ વચનોગની અપેક્ષાએ જ અસત્યરૂપ માનવામાં આવતી નથી પણ તે મનવેગ અને કાયેગની અપેક્ષાએ પણ અસત્ય મનાય છે. આ પ્રકારની અસત્ય पाणी रे " अकुसला" ला समितिथी २डित । डाय छे तथा “ अलि. શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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