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________________ सुदर्शिनी टीका अ० २ सू० ५ नास्तिकवादिमतनिरूपणम् १९१ क्वाणरवि नत्थि ' प्रत्याख्यानं सावद्यकर्मनिवृत्तिलक्षणमपि नास्ति धर्मस्याभावे तत्साधनस्य प्रत्याख्यानस्याप्यभावः । अस्य मृषावं, सर्वज्ञ वचनविरोधात् । ' न वि अत्थि ' नापि च स्तः ' कालमच्चू ' कालमृत्यू = कालः = भूतभविष्यद् वर्तमान लक्षणः कालः मृत्युः = मरणं च । अथवा नापि चास्ति कालमृत्यु : = काले = आयु कर्मद लिकक्षाऽवसरे मृत्युर्मरणम् । 'अरिहंता' तथा अर्हन्तस्तीर्थकरा: 'चक्कवट्टी' चक्रवर्तिनः = बलदेवा वासुदेवा वा न सन्ति प्रमाणाभावात् । नापि सन्ति ' केइ ' asu - गौतमादय:, 'रिसओ' ऋषयः शमदमसंयमाद्यनुष्ठानपरायणाः ऋषयो तरह कीटक में प्रसिद्ध पुरुषार्थ का अपलाप कर केवल प्रमाणातीत नियतिवाद स्वीकारार्ह कैसे हो सकता है । पुरुषार्थ का त्यागकर इसकी स्वीकृति से तो मृषावादिता ही इसमें आती है । ( पच्चक्खाणमवि aft) साद्यकर्मो से निवृत्ति होनी इसका नाम प्रत्याख्यान है । यह कहना कि धर्म के अभाव में धर्म के साधनभूत प्रत्याख्यान का भी अभाव है ! सो यह कथन भी मृषावादरूप इसलिये है कि इसमें सर्वज्ञ के वचन से विरोध आता है ! तथा ( न वि अस्थि कालमच्चू य ) इस प्रकारकी मान्यता कि- भूत, भविष्यत् और वर्तमानकाल नहीं है, मरण भी नहीं है, अथवा आयुकर्म के दलिकों के क्षय होने के अवसर में भी मरण नहीं होता है, (अरिहंता चक्कवट्टी, बलदेवा वासुदेवा नत्थि ) अर्हन्त - तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव ये सब प्रमाण के अभाव से कोई भी नहीं हुए हैं और ( नेवस्थि के इरिसओ) न गौतम आदि ऋषि ही हुए हैं, क्यों कि शम, दम, संयम आदि अनुष्ठानों में पराथ પણ પ્રસિદ્ધ પુરૂષાથનું આરેાપણુ કર્યાં પછી પ્રમાણાતીત નિયતિવાદ કેવી રીતે સ્વીકાર્ય બની શકે ? પુરૂષાના ત્યાગ કરીને તેની સ્વીકૃતિ કરવામાં તે મૃષાवाहिता ४ रहेस छे. “ पञ्चकखाणमवि नत्थि " सावद्य भे-याय मेथी निवृत्त થવુ' તેનું નામ પ્રત્યાખ્યાન છે. એમ કહેવું કે ધર્મના અભાવે ધર્મના સાધ નરૂપ પ્રત્યાખ્યાનને પણ અભાવ છે. એવુ` કથન પણ તે કારણે મૃષાવાદરૂપ છે કે તેમાં સજ્ઞનાં વચનોનો વિશધ થાય છે તથા $6 न वि अत्थि काल मच्चू य” मा प्राश्नी मान्यता है लूत, लविण्य भने वर्तमानअण नथी, भर પણ નથી, અથવા આયુ કર્મોના સમૂહના ક્ષય થવાના અવસર આવે તે પણ મરણ થતુ નથી, अरिहंता चकवट्टी, बलदेवा वासुदेवा नत्थि " प्रभाणुना अभावे, अर्हन्त-तीर्थ४२, यम्वर्ती, जगदेव, वासुदेव वगेरे आई याशु थयां नथी मने" नेवत्थि के इरिसओ " गौतम माहि ऋषि थयां नथी, अरशु }શમ, દમ સયમ આદિ અનુષ્ઠાનામાં પરાયણ હાય તે જ વ્યક્તિને ઋષિ 16 શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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