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________________ मुदर्शिनी टीका अ० २ सू० २ अलीकवचननामानि १७३ मओ' असम्मतः न्यायज्ञैरनाचरितः, (२६) 'असच्चसंधत्तणं' असत्यसन्धत्वम् असत्य-सन्दधाति-सम्मिश्रयति सततं यः सोऽसत्यसन्धस्तस्य भावोऽसत्यसन्धत्वं =मृषाभाषि धर्मः, (२७) ' विवक्खो' विपक्षः सत्य प्रतिकूलत्वात् (२८) उबहि यं' औपधिक-मायामयम्=कपटगृहमित्यर्थः, (२९) उवहि असुद्धं ' उपध्यशुद्धम् =उपधि: सावद्यकम तेनाशुद्धम् , (३०) 'अवलोकोत्ति' अपलोप इति-कुर्वाणोऽपि 'नाहं करोमि किश्चि 'दित्यादिभिर्वस्तु प्रच्छादनम् - विइयस्स' द्वितीयस्याधर्मद्वारस्य 'इमाणि' इमानि-पूर्वोक्तानि 'एवमाइयाणि ' एवमादिकानि-अलीकादीनि 'सावज्जस्स ' सावधस्य पापसहितस्य 'अलियस्स' अलीकस्य-मृषावान्यायज्ञ पुरुषों द्वारा यह असंमत है-वे पुरुष इसका कभी भी सेवन नहीं करते हैं इसलिये यह असंमत है २५ । यह मृषाभाषियों का धर्म है इसलिये इसका नाम असत्यसंघात है २६ । सत्यभाषण का यह विपक्षी है इसलिये इसका नाम विपक्ष है। कपटों का यह घर है इसलिये इसका नाम औपधिक है २८ । सावद्यकर्मों से यह सतत अपवित्र बना रहता है इसलिये इसका नाम उपध्यशुद्ध है २९। उपधि शब्द का अर्थ सावद्यकर्म है। कार्य करता हुआ भी व्यक्ति इसके प्रभाव से प्रभावित होकर कहदिया करता है कि मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं। इस तरह इसके द्वारा वस्तु का प्रच्छादन होता है-अतः इसका नाम अलोप है ३०। (बिइयस्स ) इस तरह द्वितीय अधर्मद्वार के (इमाणि ) ये पूर्वोक्त अलीक आदि (तीसं नामधेजाणि ) गुणनिष्पन्न तीस नाम हैं । तथा ( एवमाइयाणि ) इनसे अतिरिक्त और भी इसी તેને માન્ય કરતા નથી-તેઓ તેનું કદી પણ સેવન કરતાં નથી, તેનું નામ " असंमत" (२६) ते असत्य पयन भृषावाहीमा म छ, तेथी तेनु नाम " असत्यसंघात" छ (२७) सत्य भाषाशुनु ते विपक्षी-वि३द्ध छ, तेथी तेनु नाम “ विपक्ष" छे. (२८) ४५४ानु ते घाम छ, तथा तेनु नाम" औपधिक" छ. (२८) सावध थी ते सतत अपवित्र २ छ, तेथी तेनु नाम , ' उप. ध्यशुद्ध" छे. 'उपधि' शहना अर्थ सावध छ, (३०) आर्य ४२ती व्यક્તિ પણ તેના પ્રભાવની અસર નીચે આવી જઈને કહી દે છે કે “ હું કંઈ કરતું નથી. આ રીતે તેના દ્વારા વસ્તુનું પ્રચ્છાદન થાય છે, તેથી તેનું नाम "अपलोप" छ. “ बिइयस्स" २ रीते bilon अपवान " इमाणि" पूठित मसी माहि“ तीसं नाम घेज्जाणि" गुणानुसार त्रीस नाम छ. तथा " एवमाइयाणि " ते ७५२न्त भीon ५ ते ४ ॥२॥ "सावजस्स" ५५ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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