________________
११८
प्रश्रव्याकरणसूत्रे
' जंत पत्थर ' यन्त्र प्रस्तराः = घरहादय: ' सुइतल ' सूचीतलं = ऊर्ध्वमुखसूचीमय भूमिभागः, ' क्खारखावि ' क्षारवाप्यः = क्षारजलसंभृतवापिकाः, 'कलकलंतवेयकलकलायमानवैतरणी
रणि
कलकलशब्दायमानप्रतप्तत्रपुसीसकादिपूर्णा वैतरणी नामधेया नदी 'कलंबवालुया ' कदम्बवालुका=असिसन्तप्तत्वात्कदम्ब - पुष्पवद् रक्तवालुकामयी नदी, 'जलियगुह ' ज्वलितगुहा = प्रज्वलिताग्निमयीकन्दरा, इत्येतेषां द्वन्द्वः, तेषु असिवनादिषु 'निरंभणं ' निरोधनम्, तथाउसिणोसिण कंट इल्लदुग्गम रहजोयण तत्त लोह मग्गगमणवाहणाणि उष्णोष्णकण्टकाकीर्णदुर्गमस्थयोजन तप्तलोहमार्गगमनवाहनानि = उष्णादप्युष्ण इत्युष्णोष्णः - अत्युष्णः कण्टकैः सुतीक्ष्ण कीलकैराकीर्णो व्याप्तो दुर्गमः = दुःखेण गमः = गमनं यस्य स तथा, दुर्गमश्च यो रथः तस्मिन् योजनं संयोजनं बलीवर्दानामेवेति तत्तथा, तच्च तसलोहमयमार्गे गमनं = नयनं वाहनं = भारोद्वाहनं चेति तथा तानि ॥सू० ३२|| तीक्ष्ण अग्रभागवाले दर्भ विशेषों के वन में (जंतपत्थर ) यंत्र प्रस्तरों में ( सूइतल ) उर्ध्व मुखवाली सुइयों से युक्त भूमिभाग में, ( खारवावि) खारे जल से परिपूर्ण हुई वावडियों में, ( कलकलंतवेयरणि) कलकल शब्द से युक्त ऐसे द्रवीभूत हुए रांग और सीसे आदि से भरी हुई वैतरणी नाम की नदी में, ( कलंबवालुया ) अत्यंततप्त होने के कारण कदम्बपुष्प के समान रक्त वर्णवाली वालुका से युक्त नदी में, ( जलियगुह ) प्रज्वलित अग्निमयी कन्दराओं में, ( निरंभणं ) रोक देते हैं । ( उसि - णोसिणकंटाइलदुग्गमरहजोयणतत्तलोहमग्गगमणवाहणाणि) (उसिगोसिण) अत्यंत उष्ण (कंटइल्ल ) सुतीक्ष्णकंटकों से आकीर्ण, तथा ( दुग्गम) दुर्गम - मुश्किल खींचा जा सके ऐसे (रहजोयण ) रथ में उन नारकियों को बैलों की तरह जोत देते हैं । ( तत्त लोह मग्गगमण ) तप्त
=
प्रस्तरोभां, “सूइतल" आशीवाजो लाग व स्थितिमां होय सेवी सोयोथी युक्त भूभि ५२, “ खारवावि" मारा भजथी लरेसी वावेाभां, “कलकलंत वेयरणि” ખળ ખળ અવાજથી યુક્ત. આગાળેલા કથીર, સીસું આદિના રસથી ભરેલ वैतरणी नामनी नहीभां, “कलंबवालुया" अतिशय तयेसी होवाथी उट्ठम पुष्यना समान स्तवर्णी रेतीथी युक्त नहीमां, “जलियगुह" अनवसित अग्निवाणी - शोभां "निरंभणं" शेडी हे छे. “ उसिणोसिणकंटइलदुममरह्जोयण तत्तलोहमग्गगमणवाहणाणि " " उसिणोसिण" अतिशय उष्णु, "कंटइल्ल " अति तीक्ष्णु अंटाथी छवायेस, तथा "दुग्गम" दुर्गम-भुरडेसीथी मेथी शाय तेवा “रहजो• यण" २थ साथै ते नारडीओने मनहोनी प्रेम भेडे छे. " तत्तलोह मग्गगमण "
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર