________________
-
-
-
-
-
-
-
७४
__ प्रश्नव्याकरणसूत्रे एवं प्रकारैः 'बहुहिं ' बहुभिः 'कारणसएहिं कारणशतैः प्रयोजनशतैः 'भणिए' भणितान् उक्तान् 'अभणिए य' अभणितांश्च अनुक्तांश्च, एवमादीनुक्तप्रकारान् 'तरुगणे' तरुगणान् वनस्पतिसमूहान् ‘हिंसंति' विनाशयन्ति ॥मू०१८॥
कीदृशान् जीवान् कीदृशा हिंसकाः किमर्थ घ्नन्ति ? इत्याह-'सत्ते' इत्यादि।
मूलम्-सत्ते सत्तपरिवजिए उवहणंति दढमूढा दारुणमई कोहा माणा माया लोभा हासा रती अरती सोय वेदत्थ जीय धम्मत्थ कामहेऊ सवसा अवसाअट्ठाए अणहाए य तस. पाणे थावरे य हिंसंति ॥ सू० १९ ॥
टीका-'दहमूढा' दृढमूढाः सातिशयविवेकविकलाः, 'दारुणमई' दारुणमतयः क्रूराशयाः जनाः, 'सत्तपरिवज्जिए' सत्त्वपरिवर्जितान्बलहीनान्
और भी इनसे अतिरिक्त (बहुहिं कारणसएहिं) अनेक प्रयोजनों के लिये (भणिए अभणिए य) जो यहाँ पर कहे गये और जो नहीं कहे गये हैं, (एवमाई) उन सब तरुगण वनस्पति समूहकी हिंसा करते हैं। संसारी अबुधजन इन पूर्वोक्त वस्तुओं के निर्माण के लिये वृक्षों को काटते हैं। वृक्षों को काटना ही वनस्पति जीवों की हिंसा करना है। इन उपयुक्त वस्तुओं का निर्माण वृक्षों के काष्ठ से होता है । ॥ सू० १८ ॥
उस स्थावर जीवों को कैसे २ भावों से युक्त होकर हिंसक जन मारते हैं सूत्रकार इस सूत्र द्वारा स्पष्ट करते है-' चत्ते सत्तपरिवजिए' इत्यादि ।
टीकार्थ-(दढमूला) जो सातिशय विवेक से विकल हैं-जिनके विवेक “ अण्णेहि एवमाइएहिं" ते सिवायना “ बहुहिं कारणसएहिं" lon' ५५ भने प्रयासनाने माटे “भणिए अभणिए य" 2 मही उपायां छ नथी वायां "एवमाई" ते ॥धा तरुण वनस्पति सभडनी से हिंसा કરે છે. સંસારી અબુધ કે પૂર્વોક્ત વસ્તુઓ બનાવવાને નિમિત્તે વૃક્ષોને કાપે છે. વૃક્ષોને કાપવા એ જ વનસ્પતિ જીવોની હિંસા છે ઉપર કહેલી વસ્તુઓ वृक्षानां ४माथी थाय छे. ॥ सू. १८ ॥
ત્રસ સ્થાવર ને કેવા કેવા ભાવોથી યુક્ત થઈને હિંસકજન મારે છે तेनुं 20 सूत्रा। सूत्र॥२ स्पष्टी४२९५ ४२ छ-" सत्ते सत्तपरिवज्जिए" त्या.
astथ-" दृढमूला" भतिशय विवे४थी विस छ, भन विवे४३५ यक्षुस।
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર