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________________ प्रश्नव्याकरणसूत्रे विशेषः, 'सोणिय' शोणितं-द्वितीयधातुविशेषः, 'जग' यकृत्-उदरदक्षिणभागस्थ मांसग्रन्थिः, 'फिफिस' फिप्फिसं-अन्त्रस्थितमांसविशेषः, 'फेफड़ा' इति भाषायां, 'मत्थुलिंग' मस्तुलिङ्ग-मस्तक भेजकं 'हिय' हृदयं हृदयमांसपिण्डं 'कलेजा' इति प्रसिद्धं, 'अंत' अन्नं 'आंत' इति भाषा, 'पित्त' पित्त-पित्ताशयः, फोफसं-शरीरावयवविशेषः ‘दंतहा' दन्तार्थ-दन्ताः प्रसिद्धाः, एतेषामर्थाय । पुनः-'अट्ठि' अस्थि प्रसिद्ध, मिंज' मज्जा वीर्यजनकषष्ठधातुविशेषः । उक्तञ्चप्राणियों का उनके (मंस) मोंस प्राप्त करने का, कितनेक प्राणियों का उनकी (मेय) मेद जो देह की चतुर्थ धातु है उसके प्राप्त करने का, कित. नेक प्राणियों का उनके (सोणिय ) शोणित प्राप्त करने का, कितनेक प्राणियों का उनके (जग) यकृत् को-उदर के दक्षिणभाग में रही हुई मांसग्रंथि को प्राप्त करने का, कितनेक प्राणियों का उन के "फिफिस" फिफिस को आंतों में स्थिति मांस विशेष को प्राप्त करने का, कितनेक प्राणिओं का उनके (मत्थुलिंग) मस्तक के भेजे को प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (हिय) हृदयमांसपिंड को जिसे कलेजा कहते हैं प्राप्त करने का (अंत) आंतों को प्राप्त करने का (पित्त) पित्ताशय प्राप्त करने का, कितनेक का फोफस-शरीरावयव विशेष-प्राप्त करनेका, कितनेक काउनके दांतों को प्राप्त करने का प्रयोजन होता है तथा (अहि-भिंजनह-नयणकण्ण-हारुणि-नक-धमणि-सिंग-दाढि-पिच्छ-विसाण-बाल हेर्ड) कितने का उनकी (अहि) अस्थि-हड्डी प्राप्त करनेका कितनेक का उनकी (मिंज) मा प्राशियोतुं "मंस" मांस प्राप्त ४२वान शथी तभने १५ ४२शय छ seais प्राणीमानो व तेभनी “मेय" मेरे उनी यतु धातु छ तन પ્રાપ્ત કરવા માટે કરાય છે, કેટલાંક પ્રાણીઓને વધ તેમના “ના” યકૃતને-પેટના જમણા ભાગમાં આવેલી માંસ ગ્રંથિને પ્રાપ્ત કરવા માટે કરાય છે, કેટલાંક પ્રાણીઓને વધ તેમના આંતરડામાં રહેલ માંસ વિશેષને પ્રાપ્ત કરવા માટે કરાય છે, કેટais प्राणीमानो १५ तेभनi मत्थुलिंग” भाथांभांनी भने प्रात ४२५ भाट १२॥य छ, this प्राणिमानी १५ तेमना "हिय" हय मांस घिरने કાળજ કહે છે તેને પ્રાપ્ત કરવાને માટે કરાય છે, કેટલાક પ્રાણીઓનો વધ તેમનાં “સંત” આંતરડાં પ્રાપ્ત કરવા માટે કરાય છે, કેટલાંક પ્રાણીઓને વધ तभनi fपत्त" पित्ताशय प्रास ४२वाने माटे is प्राणीमान। १५ तभनां "फोफस” शरीर में पास अवयव प्रा. ४२वाने भाटे, मने ais प्राणीमान व तमना in प्रात ४२वाने माटे थाय छे. तथा “अद्वि, मिजनह नयण, कण्ण, हारुणि, नक्क, धमणि, सिंग, दाढि, पिच्छ, विसाण, बालहेउ" सांनी व तमना "अद्वि” मस्थि-813zi प्रास. ४२वाने माटे यांनी શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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