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मुनिकुमुदचन्द्रिका टीका, सुकृष्णाचरितम्
॥ मूलम् ॥ तए णं सा सुकण्हा अजा अजचंदणाए अब्भणुण्णाया समाणी अटअट्रमियं भिक्खुपडिमं उवसंपजित्ता णं विहरइ, पढमे अट्टए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केकं पाणगस्स दतिं जाव अट्टमे अट्टए अट्ट भोयणस्स दति पडिगाहेइ, अट्ठ पाणगस्स । एवं खलु अटुमियं भिक्खुप्पडिमं चउसट्रोए राइंदिएहिं दोहि य अटासीएहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आराहित्ता नवनवमियं भिक्खुपडिमं उवसंपजित्ता णं विहरइ । पढमे नवए एक्केकं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ एक्केकं पाणगस्स, जाव नवमे नवए नव नव दत्तिं भोयणस्स पडिगाहेइ नव नव पाणगस्स, एवं खल नवनवमियं भिक्खुपडिमं एकासीईराइंदिएहिं चउहिं पंचोत्तरेहि भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आराहित्ता दसदसमियं भिक्खुपडिमं उवसंपजित्ता णं विहरइ। पढमे दसए एक्केकं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ एक्के पाणगस्स जाव दसमे दसए दस दस भोयणस्स, दस दस पाणगस्स, एवं खलु एयं दसदसमियं भिक्खुपडिमं एक्केणं राइंदियसएणं अद्वछटेहि भिक्खासएहि अहासुत्तं जाव आराहेइ, आराहित्ता बहूहि चउत्थ जाव मासद्धमासविविहतवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा सुकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव सिद्धा ॥ सू० ११ ॥ [सुकण्हानामं पंचमं अज्झयणं समत्तं]
॥ टीका ॥ 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं सा सुकण्हा अजा अजचंदणाए अब्भगुण्णाया समाणी' ततः खलु सा सुकृष्णा आर्या आर्यचन्दनया अभ्यनुज्ञाता
उसके बाद सुकृष्णा आर्या अष्टअष्टमिका भिक्षुप्रतिमा स्वीकार ત્યારપછી સુકૃણ આ “અણઅષ્ટમિકા ભિક્ષુપ્રતિમાને સ્વીકાર કરી વિચરવા
શ્રી અન્તકૃત દશાંગ સૂત્ર