________________
पांचवें वर्ग का पद्मावती रानी का प्रथम अध्ययन, छट्ठ वर्ग का मुद्गरपाणि [अर्जुनमाली] नाम का तीसरा अध्ययन व अतिमुक्त [एवंता] कुंवर का पन्द्रहवां अध्ययन और आठवें वर्ग के काली सुकाली आदि दसों रानियों के अध्ययन में विस्तृत वर्णन है, शेष पचहत्तर अध्ययनों का वर्णन साधारण और संक्षिप्त है।
अंतगड सूत्र की वाचना श्री सुधर्मास्वामीने अपने प्रिय ज्येष्ठ शिष्य श्री जम्बूस्वामी को चम्पापुरी में दी थी। उस समय वहां मगधाधीश श्री कूणिक राजा का राज्य था। भूपति कूणिक भगवान महावीर स्वामी का परम भक्त था, "भगवान कहां बिराजते हैं' यह समाचार नित्य प्राप्त करही वह दातून करता था । राजा कूणिकने जैनधर्म के विकास के लिये अपने राज्यमें सर्वत्र सुव्यवस्था अपनी देखरेखमें की थी। उसके राज्यकाल में सभी गांव व नगर में जैन गुरुकुल प्रचुर संख्यामें राज्य व्यवस्था से चलते थे। जैनधर्म पालने वाले साधर्मिकों को कला कौशल सिखाने के लिये उद्योगशालाओं की भी राज्य की तरफ से सर्वत्र व्यवस्था थी। गरीब अनाथ साधर्मियों के भरण पोषण की व्यवस्था स्वयं कूणिक राजा अपने हाथों से करता था। अनेक गांव व नगरों में धर्मध्यान पौषध सामायिक करने के हित राजाने स्थान २ पर पौषधशालाओंका निर्माण कराया था। वह स्वयं अपने हाथों से श्रमण निर्ग्रन्थों को निर्दोष आहार पानी आदि खाद्य पदार्थो का व वस्त्र पात्र आदि उपभोग्य वस्तुओं का भावपूर्वक दान करता था वह अपनी राज्य व्यवस्था के साथ धार्मिक व्यवस्था का भार निभाने में पूर्ण दक्ष था। उन्हों ने अपने राज्य में अमारी घोषणा कराई थी। उसका जीवन धर्म से पूरा ओतप्रोत था। राजा कूणिक की राजधानी चंपानगरी उस समय कला कौशल के कारण चारों ओर प्रसिद्ध थी। उसमें बडे २ धनाढ्य श्रीमन्त धर्ममय जीवन बनाकर आनन्द से अपना व्यवसाय चलाते हुए रहते थे। ऐसे श्री सुधर्मास्वामीने श्री जम्बू स्वामी को अंतगड सूत्र सुनाया।
શ્રી અન્નકૃત દશાંગ સૂત્ર