________________
उन मोक्ष प्राप्त आप्त पुरुषों का जन्म इस संसार में स्वपर कल्याण को प्रकट करने के लिये हुआ था, उन धीरवीर पुरुषों के विचार दृढ और साहसपूर्ण थे, उनका हृदय और आचरण अति उज्ज्वल था, उनकी भावनायें महान और विशुद्धतर थी, उनका त्याग अचल और अटल था, उनका वैराग्य उत्तुंग हेमगिरिवत् अकंप और निश्चल था, उनका संयमाराधन निर्दोष शुद्ध स्फटिक के समान अति निर्मल व सर्वशुद्ध था, मल विहीन तप्त सुवर्ण के समान उनका तप अतिदीप्त व कर्मशत्रुओं के नाश करने में अचूक बाणावलि के सदृश था, उनका निर्मल ज्ञान अगाध व अमाप था ।
जैन शासन के उन तपस्वी मुनियोंने संसार त्याग के पश्चात् ज्ञान द्वारा यह निश्चय किया कि-आत्मा को कर्म मल से रहित करने के लिये तप और संयम जैसा एक भी उपाय नहीं है तो वे अपने शरीर की जरा भी परवाह (यत्न) रखे विना तपस्या में संलग्न हुए। उन्हें अपनी आत्मा का हित जितना प्रिय था उतना शरीर हित प्रिय नहीं था। वे आत्मशुद्धि के लिये तप संयम के आराधन में सदा उत्साहित रहते थे। उन्हें जैसे भी हो जल्दी मोक्ष पहुंचने की अभिलाषा थी, जिससे उन्होंने अप्रमत्त बनकर संयम तप द्वारा आत्मकल्याण किया ।
उन तपोमय जीवन जीनेवालों की जीवनिकाओं का वृत्तान्त ग्यारह अंग के छ अंगों में भिन्न २ रूप से वर्णित है, परन्तु इस अंतगड सूत्र में तो उन्ही भावितात्माओं का वर्णन है कि, जिन्होंने अपने उसी भव में संयम तप द्वारा अन्तिम अवस्था में सब कों का अंत करके केवली बनकर मोक्ष को प्राप्त हुए। इस अंतगड सूत्र में आठ वर्ग और नव्वे अध्ययन हैं ।
आठ वर्ग के प्रथम वर्ग में (१) गौतम (२) समुद्र (३) सागर (४) गम्भीर (५) स्तिमित (६) अचल (७) काम्पिल्य (८) अक्षोभ (९) प्रसेनकुमार और (१०) विष्णुकुमार का वर्णन है ।
શ્રી અન્નકૃત દશાંગ સૂત્ર