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________________ ८४ उपासक दशाङ्गसूत्रे भार्यां भरणीया स्त्रीति यावत्, 'अहीन याव' दिति, अत्र यावच्छब्दवलेन 'अहीणपंचिदियसरीरा लक्ख्णर्वजणगुणोत्रवेया माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्ण सृजायसवंगसुन्दरंगा ससिसोमाकारा कंता पियदंसणा सुख्वा' इत्येवं विशेषणानामन्यत्रोक्तानां समन्वयो बोद्धव्यस्तत्र' - अहीनपञ्चेन्द्रियशरीरा लक्षणाव्यञ्जनगुणोपपेता मानोन्मान प्रमाणपरिपूर्ण सुजातसर्वाङ्गसुन्दराङ्गा शशिसौम्याकारा कान्ता प्रियदर्शना सुरूपा' इति च्छाया । अथैतानि विशेषणानि प्रतिपदं व्याचक्ष्महे - अहीनानि - लक्षण - स्वरूपाभ्यां परिपूर्णानि पञ्च इन्द्रियाणि यस्मिंस्तादृशं शरीरं यस्याः सा अहीनपञ्चेन्द्रियशरीरा स्वस्वविपयग्रहणसमर्थपूर्णाकारचक्षुरादीन्द्रियविशिष्टेत्यर्थः, 'लक्षणे' - ति लक्ष्यन्ते =चिह्नयन्ते यैस्तानि लक्षणानि=स्त्रीचिह्नानि हस्तस्थविद्या धन-जीवित रेखारूपाणि और आनन्द स्वभाववाली थी, इसलिए वह 'यथानाम तथा गुणवाली' थी। 'अहीन' के आगे जो 'जाव' शब्द है उससे इतना संग्रह किया है – “अहीणपंचिदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया, माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्ण सुजायसव्वंगसुंदरंगा, ससिसोमाकारा, कंता, पियदंसणा सुरूवा ।। ये विशेषण अन्यत्र कहे गये हैं, अत एव इन्हींका यहां संग्रह है, इनका अर्थ -- अहीणपंचिदियसरीरा - लक्षण और स्वरूप से परिपूर्ण ( पूरी) पांच इन्द्रियाँ सहित शरीरवाली थी अर्थात् जिसकी चक्षु आदि पाँचों इन्द्रियां अपना अपना विषय ग्रहण करनेमें पूर्ण सावधान तथा यथायोग्य आकारवाली थीं। लक्खणर्वजणगुणोववेग्रा - जिनके द्वारा पहिचान होती है उन्हें लक्षण (चिह्न) कहते हैं, अथवा हाथ आदि में बनी हुई विद्या, तथा धन, जीवन आदिकी रेखाओंको लक्षण कहते हैं। जिनके द्वारा अभिव्यक्ति मानहं स्वभाववाणी हुती, तेथी ते 'यथानाम - तथागुश' हुती. 'माहीन' पछी ने 'लव यावत् शब्द छे तेथी साटसां शण्होनो संग्रह छे:- अहीणपंचिंदियसरीरा, लक्जणवजणगुणाववेया, माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदर रंगा, ससिसोमाकारा, कता, पियदसणा, सुरूवा मे विशेष अन्यत्र उडेलां छे. तेथी तेनेो महीं संग्रह छे. अर्थ: अहीणपंचिदियसरीरा -लक्षणु અને સ્વરૂપથી પરિપૂર્ણ પાંચ ઇંદ્રિય સહિત શરીરવાળી હતી, અર્થાત્ જેની આંખા વગેરે પાંચે ઇન્દ્રિયે પોતપોતાને વિષય ગ્રહણ કરવામાં પૂર્ણ સાધન તથા યથાયેાગ્ય આકારવાળી हती. लकखणवौंजणगुणाववेया–भेनी द्वारा पिछा કહે છે, અથવા હાથ વગેરેમાંની :વિદ્યા, ધન ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર थाय छे. तेने सक्षायु (सिन्ह) જીવન આદિની રેખામેને લક્ષણ
SR No.006335
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages587
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size30 MB
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