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________________ ७६२ ___ज्ञाताधर्मकथासूत्र पच्चुण्णमइ पच्चुण्णमित्ता कडयतुडियर्थभियाओ भुयाओ साहरइ साहरित्ता करयल जाव कट्टु एवं बयासी-जमोऽत्थुणं अरहंताणं जाव संपत्ताणं नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाय संपाविउकामस्स बंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इह गया पासउ मं भगवं तत्थ गए इह गयत्तिकटु वंदइ नमसइ बंदित्ता नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहा निसपणा, तएणं तीसे कालीए देवीए इमेयारूबे जाव समुप्पजित्था -सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्ता जाय पज्जुवासित्तएत्तिकटु एवं संपेहेइ संपेहित्ता आभिओगिए देवे सदावेइ सहावित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे एवं जहा सूरियाभो तहेब आणत्तियं देइ जाव दिव्यं सुरवराभिगमणजोग्गं जाणविमाणं करेह करित्ता जाव पच्चपिणह, तेधि तहेव करेत्ता जाव पच्चप्पिणंति, णवरं जोयणसहस्सवित्थिणं जाणविमाणं सेसं तहेब, तहेव णामगोयं साहेइ तहेव नट्टविहिं उवदंसेइ जाव पडिगया ॥ सू० २ ॥ टीको-'जइणं भंते' इत्यादि । जम्बूस्वामीपृच्छति-यदि खलु 'भंते' भदन्त ! हे भगवन् ! श्रमणेन यावत्संपाप्तेन धर्मकथानां दशवर्गाः प्रज्ञप्ताः, -जइणं भंते ! इत्यादि। टीकार्थः-(जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेण धम्मकहाणं दसग्गा पण्णत्ता पढमस्स णं भंते ! बग्गस्स समणेणं जोय संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स) जंबूस्वामी श्रो जइणं भंते ! इत्यादि(जइणं भंते ! समणेणं जाय संपत्तेणं धम्मकहाणं दसवग्गा पण्णत्ता पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? एवं क्लु जंबु ! समणेणं जाय संपत्तणं पढमस्स० ) श्री शताधर्म अथांग सूत्र : 03
SR No.006334
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages867
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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