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__ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे
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भदन्त ! कृष्णं वासुदेवमुत्तमपुरुष पश्यामि ततः खलु मुनिसुव्रतोऽर्हन् कपिलं वासुदेवम् एवमवादीत्-नो खलु हे देवानुपिय ! एवं भूतं वा, भवति वा भविष्यति वा यत् खलु अर्हन् अर्हन्तं पश्यति, चक्रवर्ती वा चक्रवर्तिनं पश्यति बलदेवो वा बलदेवं पश्यति वासुदेवो वा वासुदेवं पश्यति, तथा ऽपि च खलु त्वं अह भंते ! कण्हं वासुदेवं उत्तमपुरिसं सरिसपुरिसं पासामि ) इस प्रकार सुनकर उस कपिल वासुदेव ने मुनि सुव्रत प्रभु को वंदना की-नमस्कार किया वंदना नमस्कार करके फिर उनसे इस प्रकार कहा -हे भदंत ! मैं जाता हूँ और उत्तम पुरुष उन कृष्णवासुदेव से कि जो मेरे जैसे पुरुष हैं-वासुदेव पद के धारक हैं-जाकर मिलता हूँ। (तएणं मुणि सुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासो) तब मुनि सुव्रत प्रभु ने उस कपिल वासुदेव से इस प्रकार कहा-(नो खलु देवाणुप्पिया! एवं भूयं वा ६ जणं अरहंतो, वा अरहंतं पासइ, चक्कवट्टी वा चक्कवहिं पासइ, बलदेवो वा, बलदेवं पासइ, वासुदेवो वा वासुदेवं पासइ) हे देवानुप्रिय ! ऐसी बात न हुई है, वर्तमान में न होती है और न भविव्यत्काल में होनेवाली है कि जो एक तीर्थकर दूसरे तीर्थकर से मिलें, एक चक्रवर्ती दूसरे चक्रवर्ती से मिले, एक बलदेव दूसरे बलदेव से मिलें, एक वासुदेव दूसरे वासुदेव से मिलें । ऐसा सिद्धान्त का नियम है कि एक तीर्थकर का दूसरे तीर्थकर से कभी भी मिलाप नहीं होता है। णं अहभंते ! कण्हं वासुदेवं उत्तमपुरिसं सरिसपुरिसं पासामि )
આ પ્રમાણે સાંભળીને તે કપિલવાસુદેવે મુનિસુવ્રત પ્રભુને વંદન તેમજ નમન કર્યા. વંદન અને નમન કરીને તેમની સામે આ પ્રમાણે વિનંતી કરતાં કહ્યું કે હે ભદંત ! હું જાઉં છું અને જઈને મારા જેવા તે ઉત્તમ પુરૂષ કૃષ્ણ पासुदेव । वासुदेव पहने नाव -तमन म छु. (तएणं मुणि सुव्वए अरहा कबिल वासुदेव एवं वयासी) त्यारे मुनिसुव्रत प्रभुत पित વાસુદેવને આ પ્રમાણે કહ્યું કે
(नो खलु देवाणप्पिया! एवं भूयं वा ३ जणं अरहंतो वा अरहंतं पासइ, चक्कवट्टी वा चक्कट्टि पासइ, बलदेवो वा, बलदेवं पासइ, वासुदेवो वा वासुदेवं पासइ)
હે દેવાનુપ્રિય! એવી વાત કોઈ પણ દિવસે સંભવી નથી, વર્તમાનમાં પણ સંભવી શકે તેમ નથી અને ભવિષ્યકાળમાં પણ સંભવી શકશે નહિ કે એક તીર્થકર બીજા તીર્થકરને મળે, એક ચકવતાં બીજા ચકવર્તીને મળે, એક બળદેવ બીજા બળદેવને મળે. આ જાતને સિદ્ધાન્તને નિયમ છે કે એક
श्री शताधर्म अथांग सूत्र : 03