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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे ततः खलु सा द्रौपदी राजवरकन्या उन्मुक्तबालभाषा यावद् उत्कृष्टा, उत्कृष्ट शरीरा जाता चाप्यभवत् । ततः खलु तां द्रौपदी राजबरकन्यामन्यदा कदाचिद 'अंते उरियाओ' आन्तः पुरिक्यः अन्तः पुरवर्तिन्यः स्त्रियः स्नातां यावत्-वखाकंकारविभूषितां कुर्वन्ति कृत्वा द्रुपदस्य राज्ञः पादौ चन्दितुं 'पेसंति ' प्रेषयन्ति, ततः खलु सा द्रौपदी राजवरकन्या यत्रैव द्रुपदो राजा तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य द्रुपदस्य राज्ञः पादग्रहणं करोति, ततः खलु स द्रुपदो राजा द्रौपदी दारिकामङ्के होकर इस तरह पलने पुषने लगी कि जिस तरह गिरि की कंदरा के प्रदेशमें उत्पन्न हुई चंपकलता वात रहित निरुपद्रव स्थान में आनन्द के साथ पलती पुषतो है । (तएणं सा दोवई रायवरकन्ना उम्मुक्कबालभावा, जाव उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था, तएणं तं दोवई रायबरकन्नं अण्णया कयाई अंते उरियाओ व्हायं जाव बिभूसियं करेंति, करित्ता दुवयस्स रण्णो पाए वंदिउँ पेसंति ) वह राजवर कन्या द्रौपदी बालभाव रहित होकर जच यौवन अवस्था वाली हो चुकी तब इस के शरीर में लावण्य की चमक से विषय सौन्दर्य आ गया-अतः उस समय यह विशेषरूप से उत्कृष्ट शरीर वाली बनगई। किसी एक दिन की बात है कि अंतः पुर को स्त्रियों ने द्रौपदी को स्नान कराकर यावत् वस्त्रालंकार से विभूषित किया-और विभूषित कर के द्रुपद राजा की चरण वंदना करने के लिये भेज दिया (तएणं सा दोवइ राय० जेणेव दुवए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, दुवयस्स रणो पायग्गहणं करेइ, દારિકા પાંચ ધાયમાતાએથી યુક્ત થઈને આ પ્રમાણે લાલિત પાલિત થવા માંડી જેમકે પર્વતની કંદરાના પ્રદેશમાં ઉત્પન્ન થયેલી ચંપકલતા નિર્વાત, (२३५द्रव २थानमा सुमेथी मोटी थती न य ! (एण सा दोबई रायवरकन्ना उम्मुक्कबालभावा जाव उकिदुसरीरा जाया यावि होत्या, तएणं तदोवई रायवरकन्नं अण्णया कयाई अंते उरियाओ व्हायजाव विभूसिय करे ति करिता दुवयस्स रण्णो पाए वंदिउ पेसति) ते २१०४१२ ४-या, द्रौपदी य५७ पटावीन ત્યારે યુવાવસ્થા સંપન્ન થઈ ગઈ ત્યારે તેના શરીરમાં લાવયના ચમકથી સવિશેષ સૌંદર્ય દીપી ઉઠયું. તેથી તે વખતે તે વિશેષ રૂપથી ઉત્કૃષ્ટ શરીરવાળી થઈ ગઈ હતી. કોઈ એક દિવસની વાત છે કે રણવાસની સ્ત્રીઓએ દ્રૌપદીને સ્નાન કરાવ્યું યાવત્ અલંકારોથી વિભૂષિત કરી અને વિભૂષિત કરીને ६५६ २inनी यर१४ा ४२वा भाटे मेसी ( तएण सा दोवइ राय जेणेव दुवए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता, दुवयस्स रण्णो पायग्गहणं करेइ, तएणं श्री शताधर्म थांग सूत्र :03
SR No.006334
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages867
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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