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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० १५ नंदिफलस्वरूपनिरूपणम् १०७ अथवा ' भग्गलुग्गस्स ' भग्नरुग्गाय भग्नाय = त्रुटितहस्तपादाघवयवाय रुग्णाय = रोगाक्रान्ताय रोगग्रस्ताय वा 'साहेज्ज ' साहाय्यम् = औषधोपचारादि करणरूपं ददाति, तथा - सुखं -- सुखेन = सुखपूर्वक च तम् अहिच्छत्रां नगरी ' संपावेइ' संप्रापयति संप्रापयिष्यतीत्यर्थः । तिकटु' इति कृत्वा एवमुच्चार्य द्वितीयमपि तृतीयमपि वारं घोषयत, घोषयित्वा मम 'एयमाणत्तियं' एतामाज्ञप्तिकाम् एतद्रूपां ममाज्ञां ' पच्चप्पिणह' मत्यर्पयत-मदुक्तां घोषणां कृत्वा पुनमा निवेदयतेत्यर्थः । ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषाः 'तथाऽस्तु. सुहंसुहेणं अहिच्छत्तं संपावेइ, त्ति कटु दोच्चपि तच्चपि घासेह) पदब्राण (जूता) रहित है तो जूता (पदत्राण ) देगा जलपात्र रहित होगा उसे जलपात्र देगा, कलेवा (भोजन) रहित है तो कलेवा (भोजन) देगा, शम्ब लपाथेय पूरक द्रव्यसे रहित है तो उसे शम्बल पाथेय-भाता पूरक द्रव्य देगा, अर्थात् चलते२ बीच मार्ग में ही जिसका कलेवा (भोजन) समाप्त हो जावेगा उसे उसके योग्य द्रव्यप्रदान करेगा, मार्गके मध्यमें चलते२ यदि वह घोड़ेसे गिर गया होगा, अथवा पैदल चलते२ यदि वह पैर फिसल कर गिर गया होगा और इस तरह से उसके हाथ पैर आदि टूट गये होंगे तो उसकी सार संभाल करेगा-रोगी की दवाई करेगा, और बड़े आनन्द के साथ उसे अहिच्छत्रा नगरीमें पहुँचा देगा। इस प्रकार की इस घोषणा को तुम लोग दो तीन बार करना । और (घोसित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ) करके फिर हमें पीछे इसकी खबर देना (तएणं ते कौटुंबियपुरिसा जाव एवं क्यासी हंदि सुणंतु भवतो चंपा भग्गलुग्गस्स साहेज्जं दलयइ, सुहं सुहेणं अहिच्छत्तं संपावेइ, त्ति कड्ड दाच पि त चंपि घोसेह) જેડા વગરને હશે તેને જેડા આપશે, જમવાની સગવડ હશે નહિ તેને જમવાની સગવડ કરી આપશે. શંબલ-પાથેય-પૂરક દ્રવ્ય વગરનો હશે તેને શંબલ-પાથેય-પૂરક દ્રવ્ય આપશે. એટલે કે માર્ગમાં અધવચ્ચે ભાતું ખલાસ થઈ ગયું હશે તેને ચગ્ય ધન આપશે. માર્ગમાં અધવચ્ચે ચાલતાં ચાલતાં જે તે ઘડા ઉપરથી પડી જશે અથવા પગે ચાલતાં ચાલતાં જે તે પગ લપસવાથી પડી જશે અને તેથી તેના હાથ પગ વગેરે. ભાંગી ગયા હશે તે તેની તે સુશ્રુષા કરશે-રોગની દવા કરશે અને સુખેથી તેને અહિચ્છત્રા નગરીમાં પહોંચાउश. मा शत तमे मे ३ वमत घोषण। ४२। सने (घोसित्ता मम एयमाण त्तियं पच्चप्पिणह ) घोषणा रीने मम मम२ पापी. (तएणं ते कोडुबियपुरिसा जाव एवं वयासी हंदि सुगंतु भवंतो चंपानयरी श्री शताधर्म अथांग सूत्र : 03
SR No.006334
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages867
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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