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________________ ४७८ म ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे ततस्तदनन्तरं खलु सा मल्ली विदेहराजवरकन्या कुम्भकं राजानम् एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण, अवादीत-हे तात ! यूयं खलु मा अपहतमनः संकल्पो यावतध्यायथ, हे तात ! यूयं खलु तेषां जितशत्रुप्रमुखाणां षण्णां राज्ञां प्रत्येकं रहसि दूतसंप्रेषणं कुरुत, एकैकं प्रत्येवं वदत-'तव-तुभ्यं दास्यामि मल्ली विदेहराजवरकन्याम् ' इति कृत्वा-इत्युक्त्वा, सन्ध्याकालसमये - मूर्येऽस्तंगतेसति 'पविरलमणूससि ' प्रविरलमनुष्ये-मार्गादौ क्वचिद् क्वचिद् पविरला अल्पा मनुष्या यत्र स तथा तस्मिन्, रात्रिसद्भावे सतोत्यर्थः तथा निशान्ते जनकलकले ध्वनिवर्जिते, कोई भी छिद्र आदि नहीं मिल रहा है । मैंने अनेक विध उपायों से उन्हें परास्त करने का विचार भी किया-औत्पत्ति की आदि बुद्धियों से सचिवों के साथ उन्हें वश करने की मंत्रणा भी की परन्तु मुझे कछ भी उपाय इन्हें वश या परास्त करने का नजर नहीं आ रहा है-अतः अपहतमनः संकल्प वाला बना हुआ मैं इस समय चिन्ताग्रस्त हो रहा हूँ। (तएणं सा मल्ली विदेहरायवरकना कुंभयं रायं एवं चयासी) इस प्रकार अपने पिता कुंभक राजा की बात सुनकर उस विदेहराजवर कन्या ने उन से कहा - (माणं तुम्भे ताओ ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह ) हे तात ! आप अपहत मनः संकल्प होकर यावत् चिन्तित न बने मैं इस विषयमें आपको उपाय बतलाती हूँ ( तुम्भेणं ताओ तेसि जिय सत्तू पामाक्खाण छण्हरायाण पत्तय रहसियं दूय संपेसे करेह ) हे पिताजी ! वह उपाय यह है कि आप उन जितशत्रु प्रमुख राजाओं में से प्रत्येक राजा के पास एकान्त में अपना दूत અત્યાર સુધી તેમનું એક પણ છિદ્ર (ખામી) ની જાણ થઈ શકી નહિ. ઘણા ઉપાથી તેમને હરાવવાના વિચાર પણ મેં કર્યા છે, ત્પત્તિકી વગેરે બુદ્ધિઓથી મંત્રીઓની સાથે વિચારણા પણ કરી છે પણ મને તેઓને સ્વાધીન બનાવવા કે હરાવવા માટે કઈ એક પણ ઉપાય જણાતું નથી. એથી अपडतमनः स४६५वाणे मात ध्यानमा तीन धन मेही छु. (तएणं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुभव राय एवं वयासी ) मा शत पोताना પિતા કુંભક રાજાની વાત સાંભળીને વિદેહરાજવર કન્યાએ તેમને કહ્યું કે(मा णं तुब्भे ताओ ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह ) 3 तत! सत्यारे તમે ચિતામગ્ન છે એટલે તેને દૂર કરવા માટે હું એક ઉપાય બતાવું છું. ( तुम्भेण ताओ तेसि जियसत्त पामोक्खाण छहं रायाण पत्तेय रहसिय यस पेसे करेह) पिता ! तमे शत्रु प्रभुभ रानाभाथी १३४ शनी પાસે એકાંતમાં પોતાને દૂત મોકલે. શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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