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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गस्त्रे दीव-भो देवानुप्रियाः 'खिप्पामेव ' क्षिप्रमेव शीघ्रमेव सुधर्मायां सभायांगत्वा 'मेघोघरसियं ' मेघौघरसितां मेघौघानां मेघसमूहाना रसितमिव रसितं ध्वनिरिव ध्वनिर्यस्यारतां गम्भीरां-सान्द्रो 'महुरसई ' मधुरशब्दां 'कोमुइयं ' कौमुदिका उत्सवसूचनासमये वादनीया कौमुदिका नाम्नी श्री कृष्णवासुदेवस्य भेरी तां, मेरि दुन्दुभि 'तालेह' ताडयतवादयत । ततः तदनन्तर खलु ते कौटुम्बिक पुरुषाः कृष्णेन वासुदेवेनैवमुक्ताः सन्तो हृष्टाः यावत् हर्षवशविसर्पद् हृदया मस्तकेsञ्जलिं कला एवं स्वामिन् तथेति ' यावत् 'हे स्वामिन् एवमेव तथास्तु' इत्युक्त्वा प्रतिशण्वन्ति-स्वीकुर्वन्ति । प्रतिश्रुत्य आज्ञा स्वीकृत्य कृष्णस्य वासुदे. वस्यान्तिकात् समीपात् 'पडिनिवखमंति' प्रतिनिष्क्रामन्ति=निःसरन्ति । प्रति. पुरूषोंको बुलाया (सदावित्ता एवं वयासी) बुलाकर उनसे ऐसा कहा( खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया सभाए सुहम्माए ) भो देवानुप्रियो ! तुम लोग शीध्र ही सुधर्मा नाम की सभा मे जाकर (मेघोघरंसियं गंभीरमहुरसई कोमुदीयं भेरि तालेह) मेघोके समूह जैसी सान्द्र मधुर शब्दवाली कौमुदिक नामकी भेरी को कि जो उत्सव की सूचना के समय बजाई जाती है बजाओ। (तएणं ते कौटुंबियपुरिसा कण्हेणं वासु. देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ट जाव मत्थए अंजलिं कडु एवं सामी! तहत्ति जाव पडिसुणेति) कृष्णवासुदेव की इस प्रकार आज्ञा सुनकर वे कौटुम्बिक पुरूष अधिक हर्षित एवं संतुष्ट हुए और मस्तक पर अंजलि रखकर हे स्वभिन् ! जैसी आपकी आज्ञा है हम वैसा ही करेंगे ऐसा कहकर उन्होंने उनकी आज्ञा स्वीकार कर ली (पडिसुणित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति ) आज्ञा स्वीकार कर सांजीन ( कौडुबियपुरिसे सहावेइ) औटुमि पुरुषाने सोसाव्या. (सहावित्ता एवं वयासी) मालावीन तभणे धु-(खिप्पमिव भो देवाणुप्पिया ! सभाए सहम्माए ) 3 वानुप्रिया ! सवरे तमे सुधर्भा नामनी सलाम ने ( मेघोष रंसिंय गंभीरमहुरसह कोमुदीय भेरि तालेह) भेसभनी नवी સાન્દ્ર મધુર શદવાળી તેમજ ઉત્સવના વખતે વગાડવામાં આવતી કૌમુહિક नामनी सेशन ॥ ( तएण ते कौडुबिय पुरिसा कण्हेणं वासुदेवे णं एवं वुत्तासमाणा हट्ठ जाव मत्थए अंजलि क एवं सामी ! तहत्ति जाव पडिसणे ति) કૃષ્ણ વાસુદેવની આવી આજ્ઞા સાંભળીને કૌટુંબિક પુરુષ ખૂબજ હર્ષિત અને સંતુષ્ટ થયા, તથા મસ્તકે અંજલિ રાખીને કહેવા લાગ્યા,- “હે સ્વામિન ! આપની જેવી આજ્ઞા છે, તે પ્રમાણેજ અમે કરીશું આમ કહીને તેઓએ તેમની माज्ञा स्वारी दीधी. “ पडिसुणित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतयाओ पडिनिक्ख શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર: ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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