SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे मूलम् - तणं ते महब्बलवज्जा छप्पिय देवा ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिईक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता इव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायायासी, तं जहा पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया संखे कासिराया, रुप्पी कुणालाही वई, अदीणसत्तू कुरुराया, जितसत्तू पंचाला हिवई || सू०९ ॥ २७६ टीका- 'तरणं ते' इत्यादि । ततस्तदनन्तरं ते महाबलवर्ज्याः षडपि देवास्तस्माद् देवलोकाद् जयन्ताद् विमानाद् । 'आउक्खणं' आयुः क्षयेण देवसम्बन्धिन आयुष्कर्म दलिक निर्जरणेन, देवसम्बन्ध्यायुः क्षयेण ' भवक्खए ' भवक्षयेण भवनि बन्धनभूतकर्मणां गत्यादीनां निर्जरणं ' ठिक्खएर्ण स्थितिक्षयेण देवसम्बन्धि स्थितिक्षयेण तेनानन्तरं चयं = देवशरीरं त्यक्त्वा इहैव जम्बूद्वीपे नाम्नि द्वीपे , ' तरणं ते महब्बलबज्जा छप्पियदेवा ' इत्यादि । टीकार्थ - ( तणं ) इसके बाद ( ते महब्बल वज्जिया) महाबल के सिवाय वे ( छप्पिय देवा) छहों देव ( ताओ देवलोगाओ आउक्खएर्ण भवक्खणं ठिइक्खएणं) उस देवलोक से जयन्त विमान से देवलाक संबन्धी आयु कर्म के दलिको की निर्जना हो जाने से अर्थात् देव पर्याय संबन्धी आयु के क्षय हो जाने से भव के कारण भूत गत्यादि कों की निर्जना हो जाने से स्थिति के क्षय हो जाने से ( अनंतरं ) उसी समय ( चयं चन्ता ) देव शरीर को छोड़कर ( इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे) इसी जंबू द्वीप नाम के द्वीप में, भारतवर्ष में भरत क्षेत्र में 6 , तएण ते महब्बल बज्जा छप्पिय देवा ' इत्यादि टीअर्थ - (तएण ) त्यारमाह ( ते महब्बल वज्जिया ) महामत सिवाय ते (छप्पियदेवा) छवे ( ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएण' ) તે દેવલાકના જય'ત વિમાનથી દેવલાક સંબંધી આયુકના દલિકાની નિરા થઈ જવાથી એટલે કે દેવ પર્યાય સંબંધી આયુષ્ય ક્ષય થવાથી ભવના કારણુ ભૂત ગતિ વગેરેની નિરા થઈ જવાથી, સ્થિતિને ક્ષય હાવાથી (अनंतरं) ते समयेन ( चयंचइत्ता ) हेव शरीरने छोडीने ( इहेव जबूद्दीवे दीवे भारहे वासे) यूद्वीप नामना मेल द्वीपसां - भारत वर्ष मां-भरत क्षेत्रमां શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy