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________________ अनगारामृतवर्षिणी टीका अ० ६ महावीरस्वामिसमवसरणम् टीकार्थ-'जइणं भंते इत्यादि, यदि खलु भदन्त श्रमणेन यावत् सम्प्राप्तेन पञ्चमस्य ज्ञाताध्ययनस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः षष्ठस्य खलु भदन्त ! ज्ञाताध्ययनस्य श्रमणेन यावत्संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहे समवसरणं, परिषत् निर्गता, तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य ३ ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूतिः अदरसामन्ते जाव धर्मध्यानोपगतो विहरति ॥सू०१॥ टीकार्थ-(भंते) हे भदंत (जइणं) यदि (जाव संपत्तेण समणेण) मुक्ति को प्रास हुए श्रमण भगवान महावीर ने (पंचमस्स णायज्झयणस्स) पांचवे ज्ञाताध्ययन का ( अयमढे पन्नत्ते ) यह पूर्वोक्त अर्थ कहा है तो (छहस्सणं भंते ! नायज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तण के अटे पत्नत्ते) उन्हीं मुक्ति प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने छठे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ प्ररूपित किया है। ( एवं खलु जंबू! ) इस प्रकार जंबू स्वामी के इस प्रश्न का उत्तर देने के लिये सुधर्मा स्वामी उन से इस तरह कहते है कि हे जबू! सुनो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है (तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं परिसा निग्गया) उस काल और उस समय में राजगृह नगर में भगवान महावीर का आगमन हुआ। भगवान् के आगमन की बात सुनकर राजगृह नगर से परिषद उन को वंदना करने के लिये उनके समिप पहुँची (ते णं कालेणं तेणं समएण) उकसाल और उस समय में (समणस्स जेढे अंतेबासीइं. टी -(भंते) 3 महन्त ! ( जइण') ने ( जाव संपत्तेणं समजेण) मुहित भगवत श्रम सावान महावीरे ( पंचमस्स णायज्झयणस्स ) पायमा साताध्ययनन। (अयमढे पन्नत्ते) मा पूर्वात म नि३पित ये छ त। (छटुस्स ण भंते ! नायज्झयणस्स समणेण जाव संपत्तण के अढे पन्नत्ते ?) मुक्ति मेवेस श्रम नपान महावीरे ७४ ज्ञात ययनन । म प्र३पित ४ा छ ? ( एवं खलु जंबु !) भू स्वामीना सतना प्रश्नने सांगणीन भाम माता सुधमा સ્વામી તેમને કહેવા લાગ્યા કે હે જંબૂ! તમારા પ્રશ્ન નો ઉત્તર સાંભળે. (तेणं कालेण तेण समएण रायगिहे समोसरण परिसा निग्गया) ते કાળે અને તે સમયે રાજગૃહ નગરમાં ભગવાન મહાવીર પધાર્યા. ભગવાન મહાવીર સ્વામીના આગમનની જાણ થતાં તેમને વંદન કરવા માટે રાજગૃહ नाथी परिष४ नीsun. ( तेण कालेण तेण समएण) ते णे मने ते १५ते (समणस्स जेट्टे अतेवासी इंदभूई अदूरसामते जाव धम्मज्झाणोवगए શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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