SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 701
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवाणीटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् देवदत्ताया मणिकाया गृहं वर्तते तत्रैवोपागच्छत , उपागत्य प्रवहणात् प्रत्यवरोहतः प्रत्यवरुह्य देवदत्ताया गणिकाया गृहमनुप्रविशतः ततस्तदनन्तरं खलु सा देवदत्ता गणिका तो सार्थवाहदारको एजमानौ-आगच्छन्तौ पश्यति, दृष्ट्वा हृष्टतुष्टा=अतिशयेन प्रमुदिता, अद्य मम भाग्योदयो जातो यत एताविभ्यपुत्रौ मम गृहे आगताविति विचार्य स्वासनादभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय सप्ताऽष्टपदान्यनुगच्छति=अभिगच्छति अनुगम्य, तयोः संमुखं गत्वा तो सार्थवाहदारको प्रत्येवं वक्ष्यमाणपकारेणावादीत् 'संदिसंतु णं' सन्दिशन्तु आदेशं है (पवहणं दुरूहंति) उस प्रवहण पर सवार हुए। (दुरुहिता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहं तेणेव उवागच्छंति) सवार होकर जहां देवदत्ताका घर था वहां पहुँचे। (उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति) पहुँच कर वे उसे प्रवहण से नीचे उतरे। (पच्चोरुहिता देवदत्ताए गणियाए गिहं अणुपविसंति) नीचे उतरकर देवदत्ता गणिका के घर में प्रवेश किया (तएणं सा देवदत्ता गणिया सत्यवाहदारए एजमाणे पासइ) देवदत्ता गणिकाने उन दोनों सार्थवाह पुत्रोंको आते हुए देखा (पासित्ता हट्टतुट्ट आसणाओ अब्भु?ई) देखकर बड़ी अधिक प्रसन्न हुई उसने विचारा आज मेरे भाग्य का उदय हुआ है, जो ये दोनों इभ्यपुत्र मेरे घर पर आये हैं इस प्रकार विचार कर वह अपने आसन से उठी-(अन्भुहिना सत्तपयाई अणुगच्छइ) उठ कर वह सात आठ पैर और सामने गई (अणुगच्छित्ता ते सत्यवाहदारए एवं बयासी) जाकर उसने उन सार्थवाह दारकों से इस प्रकार कहा (संदिसंतु णं देवाणुवनो धा२७या. (पवहणं दुरूहति) मने प्रवड (सेcul) मा मेst (दुरूहित्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहं तेणेव उवागच्छंति) मेसिने तेमा हेवहत्ताने धेर पडल्या. (उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति) त्यां पडयाने तेसो प्रव९ माथी नाय तया (पच्चोरुहित्ता देवदत्ताए गणियाए गिहं अणुपवितंति) नये तशन ग िवहत्ताना घरमा प्रविष्ट थया. (तए ण सा देवदत्ता गणिया सत्यवाहदारए एज्जमाणे पासइ) गण। वित्ताये माने साथ वार्ड पुत्रोन सावता नया. (पासित्ता हट्ठ तुट्ठ आसणाओ अन्भुटेइ) धन ते भूम ४ प्रसन्न થઈ અને તેને થયું કે આજે મારે ભાગ્યોદય થયો છે કેમકે આ બંને ઇભ્યપુત્રો (શેઠિયાના પુત્રો) મારે ઘેર આવ્યા છે. આ રીતે વિચાર કરીને તે પિતાના આસન ५२थी ली 25 (अब्भुद्वित्ता सत्तकृपयाई) ली थने ते सात-2413 uni सामे 15. अणुगच्छित्ता ते सत्थवाहदारए एवं वयासी) सामे न तणे साथवाड पुत्रोने ४धु- (संदिसंतु ण देवाणुप्पिया! किमिहागमणप्पओयण) શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy