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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे भूल ---तए णं ते सत्थवाहदारगा पहाया जाव सरीरा पवहणं दुरुहंति दुरुहिता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहं तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता पवहणाओ पञ्च्चोरुहति, पञ्च्चोरुहित्ता देवदare गणियाए हिं अणुष्पविसंति, तएणं सा देवदत्ता गणिया सत्थवाहदारए एजमाणे पासइ पासित्ता हट्टतुट्ट आसणाओ अब्भु ट्ठेइ अब्भुट्टित्ता सत्तटृपया अणुगच्छइ, अगुगच्छित्ता ते सत्थवाह दारए एवं वयासी -- सदिसंतु णं देवाणुपिया ! किमिहागमणप ओयणं ? तरणं ते सत्थवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं वयासीइच्छामो णं देवापिए ! तुब्भेहिं सद्धिं सुभ्रमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पञ्चणुब्भवमाणा विहरित्तए । तएणं सा देवदत्ता तांस सत्थवाहदारगाणं एयमहं पडिसुणेइ, पडिणित्ता व्हाया कयकिच्चा किंते पवर जाव सिरिसमाणवेसा जेणेव सत्थवाहदा रगा तेणेव समागया ॥ सू. ८ ॥ ६८८ टीका -- 'तरणं ते सत्यवाहदारगा व्हाया ' इत्यादि - ततस्तदनन्तरं खलु तौ सार्थवाहदारकौ स्नातौ स्नानानन्तरं कृतवलिकर्माणौ यावदाभरणालङ्कृतशरीरौ परिहित शुद्धवस्त्रौ महणं दूरोहतः आरोहतः दूरुह्य यत्रैत्र 'तएण से सत्यवाहदारगा' इत्यादि । टीकार्थ -- (a) इसके बाद (ते सत्यवाहदारगा) वे दोनों साथवाह दारक (ह्राया) कि जिन्होंने पहिले से स्नान कर लिया है (जाव सरीरा) स्नान के बाद वायसादि पक्षियों के लिये अन्नादिका भागरूपबलिकर्म कर जिन्होंने अपने शरीरको आभरण से अलंकृत किया है और शुद्ध वस्त्रों को पहिना 'तणं से सत्थवाहदारगा' इत्यादि । टीअर्थ - - (तरण) त्यार पछी (ते सत्थवाहदारगा) मने सार्थवाह पुत्रो (व्हाया ) स्नान अरीने (जान सरीरा) भने स्नान ईर्ष्या माह अगडा वगेरे पक्षीओने અન્ન ભાગ અપીને અલિક કરીને પોતાના શરીરે સુંદર આભરણા તેમજ શુદ્ધ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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