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________________ ६७८ ज्ञाताधर्म कथाङ्गसूत्र द्यर्थम् विदेशगमनं-पापाराद्यर्थवा 'समप्पाजा' समुपद्येत भवेत् 'तन्न' तत्खलु 'अम्हे हिं' आवाभ्या: 'एगयओ' एकतः एकत्र 'समेच्चा' समेत्य मिलित्वा कार्य, णित्थरियव्वं' निस्तरितव्यम् पारयितव्यं कर्तव्यमित्यर्थः, 'तिकटु' इति कृत्वा अन्योन्यं परम्परं, एनपं-एतादृशम् 'संगारं' सङ्केतम् 'पडिसुणेति' प्रतिशणुनः स्वीकुरुतः प्रतिश्रुत्य-स्वीकृत्य 'सकम्मसंपउत्ता' स्वकर्मसम्पयुक्तौ-स्वकार्य परायणौ जातो चाप्यभूताम्, स्व स्वकाय करणोत्सुकौ स्वगृहं जग्मतुरित्यर्थः ।। मूत्र ४ ॥ मूलम्-तत्थणं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ अढे जाव अपरिभया चउसट्रिकलापंडिया चउसटि. गणियागुणोक्वेया अउणतीसंविसेसे रममाणी एकवीस रइ गुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला णवंगसुत्तपडिबोहिया अट्टारसदेसीभासा विसारया सिंगारागारचारुवेसा संगयगयहसिय० उसियझया सहस्सलंभा विदिन्नछत्तचामर वालवियणियाकन्नी रहप्पयाया यावि होत्था बहणं गणिया सहस्साणं आहेवचं जाव विहरइ.सू. ५॥ रहे, प्रव्रज्या ग्रहण करे या व्यापार आदि के लिये परदेशमें जावे (तन्नं अम्हे हिं एगयओ समेच्चा णित्थरियव्वं त्ति कटु अन्नमन्नमेयारूव संगार पडिमुणेति) फिर भी अपने दोनों जो कुछ काम करे वह मिलकर ही करें। इस प्रकार उन दोनों ने परस्परमें संकेत स्वीकृत कर लिया। (पडि सुणित्ता सकम्ममं उत्ता जाया याचि होत्था) इस तरह परस्पर में सकेत बद्ध होकर वे दोनों अपने २ कार्य करने में उत्कंठित बनकर वहांसे अपने २ घर को चल दिये। मू. ४ ॥ मा शु, प्रनया अडए रीशु नेपा२ भाटे ५२६२ मे (तन्नं अम्हेहिं एगयाओ समेचा णित्थरियव्वंत्ति कट्ट अन्नमन्नमेयारूवं संगार पडि सणे ति) ५४ ममे ने गमे २ आभमां पडीत भजीन शु.२ प्रमाणे तेय मानेये ५२२५२ सत (A२त) २वीधारी दीघL. (पडिसुणित्ता सकम्म संपउत्ता जाया याविहोत्था) मा शते ५२२५२ सत (२२त) मद्ध (प्रतिज्ञामद) थने तेमा બંને પિતતાના કામમાં ઉત્સુક બનીને ત્યાંથી બંને પિતપતાને ઘેર ગયા, સૂત્ર ૪ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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