SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 682
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७० ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे नादि निवेदयति, एवं निवेदितेसत्याचार्याः परितुष्टा भवन्ति, साधवः संय. मयात्रा निर्वाहार्थमेवाहारं कुर्वन्तीति समग्राध्ययनस्य निष्कृष्टोऽर्थः । एवं खलु हे जम्बू:! श्रमणेन भगवता यावत् मोक्षं सम्प्राप्तेन द्वितीयस्य: सघाटाख्यस्य ज्ञाताध्ययनस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः 'त्तिबेमि' इति ब्रवीमि, पूर्ववत् ।स.१४। इति श्री विश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचकपञ्चदशा भाषाक लितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापकवादिमानमर्दक श्री शाहूच्छत्रपति कोल्हापुर राजप्रदत्त-जैन शास्त्राचार्यपदभूषित-को-ल्हापुरराजगुरु-बालमन चारी-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकरपूज्यश्रीघासीलालचतिविरचितायां ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्रख्यानगारधर्मामृतवर्षिण्याख्यांव्याख्यायांद्वितीय मध्ययनं सम्पूर्णम्। २। क्षुधा वेदना आदि हैं ऐसा जब कह देते हैं तो वे संतुष्ट हो जाते है। संयम यात्रा के निर्वाह के लिये ही साधुजन श्राहार करते हैं। इस प्रकार उस समग्र अध्ययन का यह निष्कर्षार्थ निकलता है । इस तरह हे जबू ! मोक्षमे संप्राप्त हुए श्रमण भगवान महावीरने संघाटाख्य ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ प्ररूपित किया है ऐसा मैं कहता हूँ । "त्तिबेमि" इन पदों की व्याख्या पहिले अध्ययनमें की ही जा है। अतः यहा नहीं की गई है। " सूत्र १४" जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री-घासीलालजी महाराजकृत 'ज्ञाताधमकथाङ्ग सूत्र की अनगारधर्मामृतवर्षिणी व्याख्यका दूसरा अध्ययन समाप्त ॥२॥ કરવામાં આવ્યો છે. આ રીતે હે જંબૂ ! મેક્ષમાં સંપ્રાપ્ત થયેલા શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે સંઘાટાખ્ય ज्ञाताध्ययनन। ५२ सध्या भु०४५ २५ मतान्यो छे. २मा हुँतनेछु: 'त्तिबेमि' આ પદની વ્યાખ્યા પ્રથમ અધ્યયનમાં કરવામાં આવી છે. સૂત્ર ૧૪ જૈનાચાર્ય–જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી–ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “જ્ઞાતાધર્મકથાનું સૂત્ર ની અનગાર ધર્મામૃત વર્ષિણી વ્યાખ્યા નું બીજું અધ્યયન સમાપ્ત ૨ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy