SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्म कथाङ्गसूत्रे स्मिन् जम्बूद्वीपे, जम्बूद्वीपनामके द्वीपे भारते भारतनाम के वर्षे क्षेत्रे दक्षिणार्द्धभरते भरतक्षेत्रस्य दक्षिणार्द्ध राजगृहं नामकं नगरमासीत्, 'वण्णओ' वर्णका वर्णन ग्रन्थोऽत्र वक्तव्यः, स च चम्पावर्णनात्मकऔपपातिकसूत्र वर्तते, सोऽत्र नपुंसकलिनिर्देशेन द्रष्टव्यः, व्याख्यातोऽप्यसौ तस्य पीयूषवर्षिण्यां टीकायां मयेति । गुणशिलकं चैत्यम् वर्णका औपपातिकमूत्रकृतवर्णनवदेवात्रज्ञातव्यः। तत्र खलु राजगृहे नगरे श्रेणिको नाम राजाऽऽसीत् । स कीदृशः ? इत्यत्राह-'महयाहिमवंत०' इत्यनेन 'महयाहिमवंतमहंतमलयमंदरमहिंदसारे' इत्येवं विज्ञेयम् महाहिमवन्महामलयमन्दरमहेन्द्रसारः तत्र महाहिमवानिव-एतन्नामकवर्षधरपर्वतइव, यथा महाहिमवान् जंबुद्दीवे दीवे-भारहे वासे दाहिणड्डभरहे रायगिहे णाम णयरे होत्था) जंबू । तुम्हारे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-उसकाल में और उस समय में इसी जब द्वीप नामके द्वीप में भरत नाम का क्षेत्र है। इस भरत क्षेत्र के दक्षि णार्द्ध में राजगृह नामका नगर था। यहां जो (वण्णओ) यह पद आया है उसका तात्पर्य यह है कि औपपातिक मूत्र में चम्पानगरी का जैसा वर्णन किया गया है वैसा ही वर्णन इस राजगृह नगर का भी जानना चाहिये। उस वर्णनका अनुवाद औपपातिक सूत्रकी पीयूषवर्षिणी नामकी टीका में कर दिया है । जिज्ञासुओं को वहां से यह विषय समझ लेना चाहिए। (गुण सिलए चेइए वन्नओ) उस नगर में गुण शिलक नामका-चैत्य था। इसका वर्णन भी औपपातिक सूत्र में किया गया है वहां से जान लेना चाहिये। (तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नामं राया होत्था महया हिमवंत वण्णओ) उस राजगृह नाम नगर में श्रेणिक इस नाम का राजा राज्य करता था। यह महां हिमवान पर्वत-जैसा महामलय पर्वत जैसा, मंदराचल जैसा, और महेन्द्र रायगिहे णामं णयरे होत्था) यू! तभा प्रश्नमा वाम मा प्रभाएो छ-ते કાળે અને તે વખતે એજ જંબુદ્વીપ નામના દ્વીપમાં ભરત નામે ક્ષેત્ર હતું. આ क्षेत्रना क्षणाद्धमा रागृह नाभे नगर तुमडी (वण्णओ) २॥ ५४ माव्यु છે. તેને અભિપ્રાય આ પ્રમાણે છે કે ઔપપાતિક સૂત્રમાં ચંપાનગરીનું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, તેવું જ વર્ણન આ રાજગૃહ નગરનું પણ સમજવું જોઈએ. તે વર્ણનને અનુવાદ પીયુષવર્ષિણી નામની ટીકામાં કરવામાં આવ્યો છે. જિજ્ઞાसुन्माये त्यांथी - विषयने समय ये. (गुणसिलए चेइए वन्नओ) ते नगरमा ગુણશિલક નામે ચૈત્ય હતું. આનું વર્ણન પણ ઔપપાતિક સૂત્રમાં કરવામાં આવ્યું છે. त्यांथी on म. (तत्थ णं रायगिहे न यरे सेणिए नाम राया होत्था महया हिमवंत वणओ) ते २०४७ नभां श्रेणुि नामे सन २०४य ४२ता . ते મહા હિમાલય પર્વતના જેવા મહામલય પર્વત જેવા, મંદરાચલ જેવા અને મહેન્દ્રના શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy