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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे भार्या=धन्य सार्थवाहपत्नी तत्रैवोपागगच्छति, उपागस्य भद्रां सार्थवाहीमेवमवादीत - एवं खलु हे देवानुमिये ! धन्यः सार्थवाहस्तव पुत्रघातकस्य यावत् प्रत्यामित्रस्य तस्माद् विपुलाद् अशनपानखाद्यस्वाद्यात् संविभागं करोति । ततः = तदनन्तरं खलु सा भद्रा सार्थवाही पान्थकस्य दासचेटकस्य 'अंतिए ' अन्तिके= समीपे 'एवं' एतम् पान्थककथितम् 'अटु' अर्थम् =धन्यसार्थवाहस्य विजयतस्करार्थ स्वस्याशनादेः संविभागकरणरूपवृत्तान्तं श्रुत्वा 'आसुरुत्ता' आशुरुप्ता, आशुरक्ता=आशु = शीघ्रं रुप्ता = कोपोदयाद् विमूढा, यद्वा आशु=शीघ्र पडिनिक्खमइ) वह पांथक दासचेटक भोजन पिटक को लेकर कारावास से निकला (पfsforखभित्ता रायगिह नयरं मज्झ मज्झे णं जेणेव सगिहे जेणेव भद्दा भारिया सत्थवाही तेणेव उवागच्छइ ) निकल कर राजगृह नगर के ठीक बीचों बीच मार्ग से होता हुआ जहां अपना घर और वह भद्रा सार्थवाहीथी वहां आया - (उवागच्छित्ता भद्द सार्थवाहीणिं एवं बयासी) आकर उसने भद्रा सार्थवाहीनी से ऐसा कहा - एवं खलु देवाणुप्पिए धणे सत्यवाहे तव पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्तस्स ताओ विउलाओ असण ४ संविभागं करे ) हे देवानुप्रिये ! धन्य सार्थवाह तुम्हारे पुत्र घातक यावत हार्दिक शत्रु विजय चौर को चिपुल अशन आदि रूप चार प्रकार के आहार में से हिस्सा देते हैं । (तपणं सा भद्दा सत्यवाही पंथयस्स दासचेडयस्स अंतिए एयम सोच्चा आसुरुत्ता रुट्ठाजाव मिसमिसेमाणा धण्णस्स सत्थवाहस्स पओसमावज्जइ ) इस तरह पांथक ६४४ લઈને જેલમાંથી બહાર નિકળ્યો (पडिनिमित्ता रायगिहं नयर मज्झ मज्झेण जेणेव सरगिहे जेणेव भद्दा भारिया सत्यवाही तेणेव उवागच्छ इ) નીકળીને રાજગૃહ નગરની ઠીક વચ્ચેના માર્ગમાં પસાર થઈ ને જ્યાં પેાતાના घर भने लद्रा सार्थवाही हुती त्यां याव्या (उवागच्छिता भदं सत्थ वाही एवं क्यासी) भावीने तेथे लद्रा सार्थवाहीने આ પ્રમાણે કહ્યું ( एवं खलु देवाणुप्पिए । घण्णे सत्थवाहे तव पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्त सताओ बिउलाओ असण ४ संविभागं करे ) हे देवानु प्रिये ! धन्य सार्थवाह તમારા પુત્રના ધાતક અને શત્રુ વિજય ચોરને બહુ જ વધારે અશન વગેરેના यार प्रारना आहारमाथी हिस्सा भावा भाटे आये छे. (तएण सा भद्दा भारिया सत्यवाही पंथ दासचेडयस्स अतिए एयम सोच्चा आसुरुत्ता मिसमिसेमाणा धण्णस्स सत्थवाहस्स पोसमावञ्जइ) रूट्ठा जाव શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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