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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ.२ सू. ८ देवदत्तवर्णनम् ६२१ शन्थकदासचेटकस्य एतमथ श्रुत्वा निशम्य तेन च महता पुत्रशाकेन (अभिभूए' अभिभूतः =आक्रान्तः सन 'परसुणियन्तेव' परशुनिकृत्त इव परशुना=कुठारेण निकृतः = छिन्नः 'चंपगपायवेव' चम्पकपादप इव= चम्पक वृक्ष इव 'घसत्ति धरणीयलसि' 'स' इति शब्देन भूमितले 'सव्वगेहि ' सर्वाङ्गै: 'संनिवइए' संनिपतितः । ततः खलु स धन्यः साहः 'ततो मुहुततरस्स' ततो मुहूर्तान्तरम्य = मुहूर्तस्य पश्चात् मुहूर्तानन्तरमित्यर्थः 'आसत्थे' आस्वस्थः आश्वस्तो वा=प्राप्तवेष्टः 'पच्छागयपाणे' पश्चादागतमाणः = पूर्व मृतप्राण इव भूत्वा पुनर्जागरितमाणः सन् देवदत्तस्य दारकस्य 'सन्त्र समता' सर्वतः समन्तात् = सर्वासु दिशासु मार्गणगवेषणं करोति, आदि में डाल दिया है। इस प्रकार कह कर वह धन्य सार्थवाह के पैरोंपर गिर पडा । (तरणं से धन्ने सत्थवाहे पंथयदासचेडयस्स एयमट्ठ सोच्चा णिसम्म तेणय महया पुत्तेसोएणा भिभूए समाणे परसुणियत्ते चंपगपायवे सत्ति धरणीतलंमि सव्वंगेहिं सन्निवइए) इस प्रकार वह धन्य सार्थवाह पथक दासचेटक से इस अर्थ- समाचार को सुनकर और उसे हृदय में अवधृत कर उस महान् पुत्र शोक से युक्त होता हुआ परशु कुठार से काटे गये चंपक वृक्षके समान समस्त अंगों से इकदम जमीन पर गिर पडा । (तएणं से धन्ने सत्थवाहे तओ मुहुत्तंतरस्स आसत्थे पच्छागयपाणे देवदिन्नस्स दारगग्स सन्नओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ) बाद में वह धन्य सार्थवाह १ मुहूर्त के बाद आश्वस्त हुआ ऐसा उस समय मालूम हुआ कि मानों इसमें प्राण लौटकर पुन: आ गये हैं-अपने पुत्र देवदत्त की सब तरफ चारों दिशाओं में मार्गणा गवेषणा તેનું અપહરણ કર્યું છે. અથવા બાળકને કોઇ દુષ્ટ ખાડા વગેરેમાં ફેંકી દીધા છે. या रीते महेतां ते धन्यसार्थवाहना पगे पडयो. (तए णं से घण्णे सत्यवाहे पंथयदासचेडयस्स एयम सोच्चा णिसम्म तेणय महया पुत्तसोयेणाभि भूये समाणे परसुणियत्तेव चपगपायवे धसत्ति धरणीतलंसि सव्वं गेहि सन्निवइए) मा प्रभाएो धन्य सार्थवाहे चांथम्हास थेटस्ना भोटेथी अधी विगत સાંભળીને તેને ખરાખર હૃદયમાં ધારણકરીને મહાન પુત્રશોકથી પીડાતા કુહાडीथी अपेक्षा थंचाना वृक्षनी प्रेम ते पृथ्वी उपर पडी गयो, (त एणं से धणे सत्थवाहे तो मुहुत्ततरस्स आसस्थे पच्छागयपाणे देवदिन्नस्स दार गस्स सव्वओ समता मग्गणगवेसण करेइ) त्यार माह मे मुहूर्त પછી ધન્ય સાÖવાહ ભાનમાં આવ્યે. તે વખતે જાણે ફરી તેઓમાં પ્રાણનું સંચ રણ થયું હોય તેમ લાગ્યું. ઊભા થઈને તે પેાતાના પુત્ર દેવદત્તની ચામેર તપાસ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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