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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ २स्. २ भद्राभार्यायाःवर्णनम् 'दायच' दायं-दानम् अभयदानादिकं, पर्चदिवसादिदानं वा, 'भायंच' भागं वर्द्धयामि-प्रभूतद्रव्यमर्पयिष्यामीत्यर्थः, तिवट्ठ' इति कृत्वा=इत्युक्या 'उवाइयं' उपयाचितम् अपत्यप्राप्तिपार्थनारूपां मान्यतां 'मनौती” इति प्रसिद्धाम् ‘उवायइत्तए' उपयाचितुं कर्तुं 'श्रयः' इति पूर्वेण सम्बन्धः। एवं सम्प्रेक्षते, सम्प्रेक्ष्य कल्ये यावज्जवलति यत्रैव धन्यः सार्थवाहस्तोवोपागच्छति, उपागत्य एवमवादीत्--एवं खलु अहं देवानुपियाः ! युष्माभिः अणुवढे मि) यदि मै हे देवानुप्रियों ! अपनी कुक्षिसे पुत्र या पुत्री को जन्म दगी तो मैं आपकी सेवा करूंगी-आपके निमित्त अभयदानादिकका वितरण करूगी, अथवा पूर्व दिनों में दान आदि बांटने की व्यवस्था करदूगी। अपने हिस्से में आपके लिये विभाग अलग तथा आपके अक्षय कोष की वृद्धि करवादंगी-तात्पर्य इसका यह है कि मेरी मनो कामना पूर्ण होने पर मैं प्रभूत द्रव्य आप सबके लिये अर्पित करूंगी। (त्ति कह उवयाइयं उवयाइत्तए) इस तरह की मुझे उनके पास मनौती-मानता-मनाने में मेरी भलाई है। (एवं संपेहेइ) इस प्रकार का उसने विचार किया। (संपेहित्ता) और विचार कर (कल्लं. जावजलंते जेणामेव धण्णे सत्थवाहे तेणामेव उवागच्छइ) वह दूसरे दिन (उसी दिन) प्रातः काल होते ही सूर्य के प्रकाशित होने पर जहां अपने पति धन्य सार्थवाह थे वहां गई । (उवागच्छित्ता एवं वयासी) वहां जाकर उसने उनसे ऐसा कहा--(एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! याणिहिं च अणुवडेमि) है वानुप्रियो ! ने भा२१ ४२थी पुत्र पुत्री सन्मशे તે હું આપની પૂજા કરીશ. આપના નિમિત્તે અભયદાન વગેરે કરીશ, અથવા તે પહેલાના દિવસે માં દાન વગેરે વહેંચવાની વ્યવસ્થા કરીશ. મારા હિસ્સામાં જે કંઈ આવશે તેમાંથી તમારે ભાગ મૂકાવડાવીશ. તેમજ તમારા અક્ષય નિધિની પણ હું વૃદ્ધિ કરીશ. મતલબ એ છે કે જે મારી મનોકામના પૂરી થશે તે હું प्रभूत द्रव्य तमा। य२ मा लेट ३५ मा ४२. (त्तिकटु उवयाइयं उवया इत्तए) At andनी मान्यतामा ४ भने वे भा श्रेय ruय छे. (एवं संपेहेइ) मा प्रमाणे ते विया२ ४ो. (संपेहित्ता) भने विया२ ४शने (कल्लं जाव जलंते जेणामेव धणे सत्यवाहे तेणामेव उवागच्छइ) मा हिवसे सवारे सूर्याध्य थतi at wयां पाताना पति धन्य साथ वाड ता त्यो ४. (उवागच्छित्ता एवं बयासी) त्याने तेने माम धु-- (एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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