________________
५८०
____ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे भए' प्रतिभयः भयोत्पादकः। 'निसंसिए' नृशंसकः। 'निरणुकंपे' निरनुकम्प: दयागुणवर्जितः। 'अहिव्व एगंतदिहिए' अहिरिवैकान्तदृष्टिकः, भुजङ्गइव क्रूरकर्मकरणे एकाग्रतालक्षणः एकान्ता-एक निश्चया दृष्टिः-विचारसरणियस्य स तथा। खुरेव एगंतधारए'क्षुर इव एकान्तधारकः, क्षुरो नापितशस्वविशेषः 'उस्तरा' इति भाषायाम, तद्वत् 'एगंत' एकान्तेन-तीव्रत्वात्सर्व प्रकारेण परवरूपपहरणे 'धारा' धारा-परोपतापनरूपा परिणामधारा यस्य सः, सर्वस्वापहारीत्यर्थः, 'गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे' गृद्ध इव-आमिष तल्लिप्सः गृद्ध इव-गृहपक्षिवत् 'आमिस, आमिषे शब्दादिविषये 'तल्लिच्छे' तल्लिच्छः= तत्परः तल्लिच्छे' इति तत्परार्थों देशी शब्दः । अथवा आमिषे विषयभोगादिके सा=अत्युत्कटा लिप्सा यस्य सः-कामभोगे तोवाभिलाषोत्यर्थः। 'अग्गिमिव सव्वभक्खी' अग्निरि व सर्वभक्षी भक्ष्याभक्ष्यसर्वभोजी सर्वजनलुण्टको इसे देखते ही जीवां के हृदयमें भय का संचार हो जाता था। (निससइए निरनुकपे अहिव्वएगंतदिट्ठोए, खुरेव एगंतधारए, गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे) यह स्वभावतः नृशंसक (घातक) था निरनुकंपे-दयागुण वर्जित था। सर्प की तरह क्रूर कम करने में इस की विचारसरणि एक निश्चय वाली होती थी, क्षुरा-उस्तरा के समान वह सर्व प्रकार से परकीय वस्तुओं के हरण करने में परोपतापनरूप परिणाम धारावाला था। गिद्धपक्षी की तरह यह शब्दादि विषयरूप आमिष में अथवा कामवासना में तत्पर रहा करता था। (आग्गमिव सम्बमक्खी जलमिवसम्पग्गाही उक्कंचण, वंचण, माया नियडि, कड, कवड, साइ, संपओग, बहले. चिरणगरविणदद सीलायारचरित्ते, जूयपसगी, मज्जपसगी भोज, पसंगा, मंसपसंगो दारुणे हिययदारए) अग्न के समान यह सर्वे भक्षी था, अथवा लक्षण से सर्व जीवों को मन लयमla j rai sai. (निसंसइए निरनुकंपे अहिव्व एगंतदिटिए खुरेव एगंतधारए, गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे) समाथी ० ते नृशस भने धात हतो. (निरनुकंपे) निय तो. सापनी भ २ मा प्रवृत थना। તેના વિચારો દઢ નિશ્ચયવાળા હતા. અસ્તરાની જેમ તે બધી રીતે બીજાઓની વસ્તુઓને હરી લેવામાં પરેપતામન રૂપ પરિણામ વાળો હતે. ગીધની જેમ શબ્દ વગેરે વિષય રૂ૫ આમિષમાં અથવા કામવાસના જેવી બાબતમાં તે હમેશાં તૈયાર रडतो तो. (अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वग्गाही उक्कंचण, वंचण, माया नियडि, कूड, कवड, साइसंपओग, बहुले, चिरणगरविणदृदु सीलायारचरिने, जूयपसंगी, मज्जपसंगी भोजपसंगी मंसपसंगी दारुणे हियय दारए) भनिना वो ते सवलक्षी तो अथवा ते सधा प्राणीमान सूटना
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧