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________________ %3 ५७४ ____ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे चेत्येषां द्वढे मानोन्मानप्रमाणानि तैः प्रतिपूर्णानि-संपन्नानि, अतएव 'सुजाय' सुजातानि यथोचिताबयवसन्निवेशयवन्ति 'सन्ध' सर्वाणि सकलानि, 'अंग' अङ्गानि-अज्यते व्यज्यते पाणी यैस्तानि मस्तकादारभ्य चरणान्तानि यस्मिंस्तत्, अतएव 'सुदरंगा' सुन्दराङ्गी-सुंदरमङ्ग वपुर्यस्याः सा तथा, 'ससिसोमागारा' शशिमौम्याकारा-शशो-चन्द्रस्तद्वत् सौम्गे-रमणीय आकार:-स्वरूपं यस्याः सा 'कंता' कान्ता कमनीया। 'पिय दसणा' प्रियदर्शना प्रियं दर्शकजनमनोहादकं दर्शनमवलोकनं यस्याः सा, अत एव 'सुरुवा' सुरूपा सर्वातिशायिरूपलावण्यवतीत्यर्थः 'करयलपरिमिय-ति वलीय. मज्झा' करतल परिमितत्रिवलिकमध्पा करतलपरिमित: मुष्टिग्राह्यः, त्रिवलिकश्चवलिकत्रयोपेतः रेखात्रयवान् 'मज्झा' मध्यभागो यस्याः सा. कृशोदरी तनु कटिश्चेत्यर्थः 'कुंडलुल्लिहियगंडलेहा' कुण्डलोल्लिखितगण्डलेखा कुण्डलाभ्यामुलिखिता-उवृष्टागण्डलेखा-कपोलावस्थितचन्दनादि रेखा यस्याः सा, कुण्डल शोभासम्पन्नेत्यर्थः। 'कोमुइ-रयणियरपडि पुण्णसोम्मवयणा' कौमुदी कार्तिकी वाला जिस पुरुष अथवा स्त्री का शरीर होता है वह प्रमाण प्राप्त कहलाता है। इस तरह मान उन्मान एवं प्रमाण के अनुसार इसके समस्त शारीरिक अवयव थे अतएव वे यथोचित सन्निवेश विशिष्ट थे। मस्तक से लेकर चरण पर्यन्त उपांग अवयव कहलाते हैं। इसी कारण इनका शरीर बहुत अधिक सुन्दर था। (ससिसोमागारा कंता पियदंसणा सुरूवा करयलपरिमिय तिवलियमज्झा) चन्द्रमा के समान इसका आकार सौम्य था। अत: बहुत ही कमनीय थी। दर्शक जनों के मन को इनका अवलोकन आढादकारक था। यह सर्वातिशायी रूप लावण्य से युक्त थी इनका त्रिवली युक्त मध्य भाग इतना अधिक पतला था कि मुष्टि ग्राह्य हो जाता था। (कुडलुल्लिहिय गंडलेहा कोमुइरयणियरपडिपुण्णसोम्मवयणा सिंगारागार चारुवेसा जाव पडिरूवा बंझा अवियाउरी દરેક અવયવો સપ્રમાણ અને ગ્ય હતા. મસ્તકથી માંડીને પગ સુધી ઉપાંગ अवयव हवाय छे. सटा भाट ४ भर्नु शरी२ भूम सुंदर तु. (ससि सोमगारा कंता पियदसणा सुरूवा करयलपरिमियतिवलियमज्जा) તેમની આકૃતિ ચન્દ્ર જેવી સૌમ્ય હતી. એથી તે ખૂબ જ કમનીય હતી. જેનારા એ માટે તેમનું દર્શન આલ્હાદ કારક હતું. તે અતિશય રૂપ અને લાવણ્ય સંપન્ન હતી. તેમની રિવલી યુક્ત કમર (મધ્ય ભાગ) એટલી બધી પાતળી હતી કે તેને समावेश भूडीमा ५ ५४ शत . (कुंडलुल्लिहियगंडलेहा कामुइरयणियरपडिपुण्ण साम्मवयणा सिंगारागारचारूवेसा जाव पडिरूवा वंझा શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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