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________________ ५४८ ज्ञाताधर्मकथागसूत्रे स्त्याभिमुखः संपर्यङ्कनिषण्ण: पद्मासनेनोपविष्टः करतलपरिगृहीतं शिर आवर्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा एवमवदत्-'नमोऽत्युणं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं नमोऽत्थुणं समणरस भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स' मम धम्मायरियस्स" नमोऽस्तु खलु अर्हद्भयो भगवद्भयः यावद् संप्राप्तभ्यः नमोस्तु खलु श्रमणाय भगवते महावीराय यावत् संप्राकामाय मम धर्माचार्याय । वंदे खलुभगवन्तं तत्रगतम् तत्र गुणशिल के चैत्ये, गत -स्थितम् इह गतः इह-अत्र-पृथिवीशिलापट्टकेऽहंगतः=स्थितोऽस्मि,पश्यतु मां भगवान् तत्र उच्चारपासवणभूमि पडिलेहइ, पडिलेहित्ता दब्भ संथरगं संयरइ संथरित्ता दब्भ संथारगं दुरुहइ) प्रतिलेखना करके फिर उन्होंने उच्चार और प्रस्रवण की भूमि की प्रतिलेखना की। इसकी। प्रतिलेखना करके फिर उन्होंने उस पर दर्भ के संथारे को विछाया। बिछाकर फिर वे उस पर बैठे और (दुरुहिता) बैठकर (पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयलपरिग्गहियं सिरसावत्त मत्थए अंजलि व एवं वयासी) पूर्वदिशा की तरफ मुख करके पद्मासन से बैठ गये और दोनों हाथों को जोड कर उसे मस्तक पर रखकर इस प्रकार बोले(नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं, णमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीररस जाव संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स बंदामि) अरहंत भगवन्तों को नमः स्कार हो मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर को नमस्कार हो । इत्यादि पाठ को बोलकर (वंदामिणं भगवंतं तत्थगयं इहगए पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयंत्ति कटु वंदइ नमसइ) फिर उन्होंने ऐसा कहा-गुणशिलक चैत्य में विराजमान उन भगवान महावीर की मैं इस पृथिवी शिलापट्टक पर रहा लेहित्ता दब्भसंथारगं संथरइ संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ) प्रतिमना કરીને તેમણે ઉચ્ચાર અને પ્રસ્ત્રવણભૂમિની પ્રતિલેખના કરી ત્યારપછી તેમણે તેના ५२ ° सथा। पाथी. पाथरीन तेयो तेना ७५२ मेसी गया अने, (दुरुहिता) मेसीन (पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कई एवं वयासी पूहिशा त२५ भांशन पासनमा मेसी गया भने मन डाय नीन तेभने भरत ५२ भूतi l प्रमाणे माझ्या (नमोत्थुगं अरिहंताणं भगवंताणं णमोत्थुणं समणस्स भगवो महावीरस्स जाव संपाविउ कामस्स मम धम्मायरियस्स दामि) भगवान १२तने नमः॥२, भा। घायायः श्रम लगवान महावीरने नभ२४॥२ माम मालीन (वंदामिण भगवंतं तत्थगयं इहगए पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयंत्ति कह वंदइ नमसइ) तेभारे युं 'शुशिल येत्या વિરાજમાન તે ભગવાન મહાવીરને હું આ પૃથ્વી શીલાપટ્ટક ઉપર સ્થિત રહેતા વંદન કરું છું. ત્યાં વિરાજતા ભગવાન મહાવીર સ્વામી અહીં બેઠેલા મને જુએઆમ કહીને શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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