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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० १ सूत्र. ४९ मेघमुने: संलेखना निरूपणम् ५४७ ष्ठति, उत्थाय श्रमणं भगवन्तं महावीरं त्रिकृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिणां करोति कृत्वा वन्दते नमस्यति, वंदित्वा नमस्यित्वा स्वयमेव पञ्चमहाव्रतानि आरोहति= गृह्णाति, आरुह्य गौतमादीन् श्रमणान् निर्ग्रन्थान् निर्ग्रन्थीश्च क्षामयति, क्षामयित्वा तथारूपै. 'कडाईहिं' कृतादिभिः स्थविरैः सार्द्ध विपुलं = विपुलनामकं पर्वतं शनैः शनैः दूरोहति, दुरुह्य स्वयमेय मेघघनसंनिकाशं पृथिवी शिलापट्टकं प्रतिलेखयति, प्रतिलेख्य उच्चारप्रस्रवणभूमिं प्रतिलेखयति, प्रतिलेख्य दर्भसंस्तारकं संस्तारयति संस्तीर्यं दर्भसस्तारकं दुरोहति दुरूख पौरमहावीर से आज्ञापित होते हुए (हजावहियए) बहुत अधिक आनन्द से तथा संतोष से पुलकित हृदय हुए । बाद में (उठाए उद्दे) उत्थान क्रिया से उठे और (उद्वित्ता समण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आग्राहिणं पयाहिणंकरेइ) उठकर उन्होंने श्रमण भगवान महावीर की तीनवार विधिपूर्वक वन्दना कर (करिता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता सयमेवपंचमहव्वयाइं आरुहइ आरुहित्ता गोयमाइसमणे निग्गथे, निग्गंधीओ य, खामेइ, खमित्ता य तहारूवेहिं कडाई थेरेहिं सद्धिं विलं पव्वयं सनियं२ दुरूहइ ) वंदना नमस्कार करके फिर उनने गौतमादिक निर्ग्रन्थ साधुओं से तथा निर्ग्रन्थी साध्वियों से मत खामणाकिया । फिर तथारूप कृतादि स्थविर साधुओं के साथ विपुल नामके पर्वत पर वे धीरे२ चढ गये । (दुरुदित्ता सयमेव मेहघणसन्निगासं पुढविसिलापट्ट्यं पडिलेहेइ) चढकर के वहां उन्होंनेस्वयं घनीभूत मेघ के समान श्याम पृथिवीरूप शिलापट्टक की प्रतिलेखना की (पडिले हित्तावीरनी आज्ञा भेजवतां (हट्ठ जाव हियए) मडुन आनंद ने संतोषथी युसति थ गया. त्यार पछी (उडाए उट्ठेइ ) उत्थान डियाथी अला थया मने (उट्ठित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ) उला थने तेभो त्रयु श्रभाणु लगवान महावीरनी विधिपूर्व वहना उरी (करिता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंचमहब्वयाई आरुहइ आरुहित्ता गोयमाइ समणे निग्गंथे निग्गंधीओ य खामेइ खामित्ताय तहारूवेहि कडाईहिं थेरेहिं सद्धि विलं पव्वयं सणियं २ दुरुहइ ) वहन भने नमस्कार अरीने तेभो लते पांयत्रतोना સ્વીકાર કર્યાં, સ્વીકાર કર્યા બાદ તેમણે ગૌતમ વગેરે સાધુએ અનેનિ થી સાધ્વીઓથી ખમતખામણા કર્યાં. ત્યાર પછી તથારૂપ કૃતાદિ સ્થવિર સાધુઓની સાથે ધીમે ધીમે વિપુલ नाभा पर्वत उचर यही गया. (दुरूहित्ता सयमेव मेहघणसन्निगासं पुढविसिलापट्टयं पडिले ) यढीने त्यां तेभाणे धनीलूत भेधना भेवा श्याम पृथ्वी३य शिक्षा. चट्टानी प्रतिक्षेाना पुरी ( पडिलेहिता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ, पडि શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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