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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटोका अ.१ सू. ४५ मेघमुनिं प्रति भगवदुपदेशः ५१९ यिकादीनि एकादशाङ्गानि अधीते, अधीत्य बहुभिश्चतुर्थषष्ठाष्टमदशमद्वादशैः मासार्धमासक्षपणैरात्मानं भावयन् विहरति । ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरो मेघानगारादिमुनिवृन्दैः सार्ध राजगृहानगराद् गुणशिलकाच्चैत्यात प्रनिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहार विहरति । स् ।४५।
मूलम्-तएणं से मेहे अणगारे अन्नया कयाइं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वेदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णंभंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसं. समणस्स भगवओ महावीरस्स एयास्वाणां थेराणां अंतिए सामाइयमाइयाई इक्कारसअंगाई अहिजइ) इसके बाद वे मेधकुमार अनगार श्रमण भगभान महावीर के तथारूप स्थबिरों के पास सामयिक आदि ११, ग्यारह, अंगों का अध्ययन करने लगे (अहि जित्ता बहहिं चउत्थ छट्ठमदसमदुवाल सेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ) अध्ययन करके फिर उन्होंने अनेक चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादश, भक्तों से और मासअर्ध मास आदितपस्याओं से आत्मा को भावित किया। (तएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्स्वमइ) इसके बाद श्रमणभगवान् महावीरने मेघकुमार आदि अनगारों के साथ राजगृह नगर से उस गुणशिलक चैत्य से विहार किया और-(पडिनिक्खमित्ता बहिया जगवयविहारं विहरइ) विहार कर फिर वे बाहर के जनपदों में विचरने लगे। ॥सूत्र ४५।।। भगवओ महावीरस्स एयारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगई अहिजइ) त्या२ मा मेघमा२ मना२ श्रमाण मगवान महावीरना तथा ३५ स्थविरानी पासे सामयि वगेरे भगियार भगाने! मल्यास श२ ज्यो. (अहिजित्ता बहूहि चउत्थ छट्टमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भवेमाणे विहरइ ) अध्ययन या माई भेधभारे ध! यतुर्थ ५०४, मष्टभ, ४शम, દ્વાદશ, ભકતોથી અને માસ અમાસ વગેરે તપસ્યાઓથી આત્માને ભાવિત કર્યો. (तएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नयराभो गुणसिलाओ चेइयाओ पडिणि.
क्खमइ ) त्या२ मा श्रम लगवान महावीरे भेषमा२ रे मनानी साथे Aडनाना शुशुशिल येत्यथा विडार ? भने ( पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ) विहा२ ४ा माह माना भी नपामा विय२९॥ १२वा साया, ॥ सूत्र “४५" ॥
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧