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________________ ५१८ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे निद्रादिपरिहारेण संयममार्गे स्थित्वा, प्राणानां भूतानां जीवानां सत्वानां संयमेन संयमो-रक्षा तेन, संयन्तव्यम् संयतितव्यमित्यर्थः। ततः स मेघकुमारः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य इममेतद्रूपं धार्मिकमुपदेशं सम्यकू प्रतीच्छतिगृह्णाति-स्वीक रोति, प्रतीष्य तथैव-भगवदुपदेशानुसारेणैव 'चिट्ठइ' तिष्ठति यावत् संयमेन संयतते । ततः खलु स मेघः-अनगारो जातः ईर्यासमितः अनगारवर्णको भणितव्यः, औपपातिकसूत्रात् सविस्तरो विज्ञेयः । ततः खलु स मेघोऽनगारः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य तथारूपाणां स्थविराणामन्तिके सामाइस प्रकार यतना से आहार का सेवन करना चाहिये यतना पूर्वक बोलना चाहिये-इस प्रकार यतना से गमनादिकक्रिया करनी चाहिये-और इस प्रकार सचेत हो हो कर प्रमाद निद्रा आदि प्रमादों के परित्याग से संयम मार्गमें स्थित होकर प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वोंकी रक्षा करते हुए उसमें प्रवृत्ति करनी चाहिये । (तएणं से मेहे समणस्स भगवओ महाबीरस्स अयमेया रूवं धम्मियं उवएस सम्म पडिच्छइ) इस प्रकार श्रमणभगवान महावीर के मुख से निर्गत इस धार्मिक उपदेश को मेघकुमारने अच्छी तरह स्वीकार कर लिया (पडिच्छित्ता तह चिट्ठइ जाव संमेजणं संजमइ) और स्वीकार करके उसी के अनुसार अपनी प्रवृत्ति करना प्रारम्भ करदी यावत् वे संयम पूर्वक अपना प्रत्येक कार्य करने लग गये। (तएणं से मेहे अणगारे जाए ईरियासमिए अणगारबन्नओ भाणियव्यो) इस तरह वे मेघकुमार अनगार ईर्यासमितिसंपन्न अनगार बन गये। इस तरह अनगार अवस्था का सविस्तरवर्णन औपपातिक सूत्र में किया गया है अतः जिज्ञासु के लिये यह वहां से जान लेना चाहिये । (तएणं से मेहे अणगारे પ્રમાણે સાવચેત થઈને પ્રમાદ નિદ્રા વગેરે પ્રમાદેને ત્યાગ કરીને સંયમ માર્ગમાં સ્થિત થઈને પ્રાણુઓ, ભૂત, જી, અને સત્ત્વની રક્ષા કરવામાં પ્રવૃત્ત થવું જોઈએ. (तए णं से मेहे समणस्स भगवओ महावीरस्स अयमेयारूबं धम्मियं उवएसं सम्म पडिच्छइ ) मा शते श्रम मावान महावीरना भुमेथी नीता पामि शने भेभारे स्वीयो. (पडिच्छित्ता तह चिट्ठइ जाव संजमेणं संजमइ) मने स्वीजरीन ते प्रमाणु संयमपूर पातानी प्रवृत्ति शरी. ( तएणं मेहे अनगारे जाए ईरियासमिए अणगारवन्नओ भाणिययो) प्रमाणे भेधभार मान॥२ ध्यासमिति संपन्न मन॥२ ગયા, અનગારે અવસ્થાનું વિસ્તૃત વર્ણન ઓપપાતિક સૂત્ર” માં કરવામાં આવ્યું छ. जिज्ञासुमे तेमाथी onी नये. (तएणं से मेहे अणगारे समणस्स શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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