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________________ धारिण्याचा इहव जम्मान विहत्या अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका असू.४५ मेघमनि प्रतिभगवपदेशः ५०९ त्रीणि रात्रि दिवानि 'वेयणं' वेदनां 'वेएमाणे' वेदयन् अनुभवन् विहृत्य 'एयं वाससयं' एक वर्षशतं परमायुः पालयित्वा इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे राजगृहे नगरे श्रेणिकस्य राज्ञो धारिण्या देव्याःकुक्षौ कुमारतया 'पञ्चायाए' प्रत्यायातः हस्तिभवात् समागतः ।।मू० ४४॥ मूलम्-तएणं तुमं मेहा ! आणुपुव्वेणं गब्भवासाओ नि क्खंते समाणे उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुपत्ते मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए, जइ जाव तुमं मेहा ! तिरिक्खजोणियभावमुवगएणं अपडिलद्धसंमत्तरयणपडिलंभेणं से पाये पाणाणुकंपयाए जाव अंतरा चेव संधारिए नो चेव णं निक्खित्ते किमंग पुण तुमं मेहा ! इयाणि विपुलकुलसमुब्भवे निरुवहयसरी समस्त शरीर को जला रही थी, सकल शरीर में तिल में तैल की तरह व्याप्त हो रही थी। तीव्र थी~-दुःसह थी। आदि २ । इस कारण तुम दाहज्वर से भी युक्त हो गये। (तएणं तुम मेहा । तं उज्जलं जाव दुर हियासं तिनि राईदियाई वेयणं वेएमाणे विहरित्ता एगं वाससयं परमाउं पा लइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रणो धारिणीए देवीए कुच्छिंसि कुमारत्ताए पच्चायाए ) इसके बाद हे मेघ ! तुम उस उज्जवल यावत् दरध्यास वेदना को तीन दिन रात तक अनुभव करते हुए एक सौ वर्ष की उत्कृष्ट आयु समाप्त कर इसी जंबू. द्वीप नाम के द्वीप में भारत वर्ष में राजगृहनगर में श्रेणिक राजा और धारिणी देवीकी कुक्षि में हस्ति की पर्याय से पुत्र रूप से जन्मे ॥ सत्र “४४" जाव दाहवकंतिए यावि विहरसि ) वहना तीन डोवाथी तavi तसनी म આખા શરીરમાં બળતરા થવા માંડી હતી. તમે દાહજવરથી પીડાઈ રહ્યા હતા. (तएणं तुम मेहा ! तं उज्जलं जाव दुरहियासं तिन्नि राइंदियाई वेयणं वेएमाणे विहरित्ता एगं वाससयं परमाउ पालइत्ता इहेव जबुद्दीवे दीवे भारहेवासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रणो धारिणीए देवीए कुच्छिसि कुमारत्ताए पञ्चायाए) त्या२ पछी भेध! ते दुःसह मने प्यास वेहना ત્રણ દિવસ અને રાત અનુભવીને એક વર્ષનું ઉત્કૃષ્ટ આયુષ્ય પૂરું કરીને એજ જંબુદ્વીપના ભારતવર્ષમાં રાજગૃહનગરમાં શ્રેણિક રાજા અને ધારિણી દેવીના ઉદરમાં હસ્તિના પર્યાયથી પુત્રરૂપે જન્મ પામ્યા. એ સૂત્ર “જ” શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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