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ज्ञाताधर्मकथासूत्रे कामक्रीडावशेन विकसता = प्रफुल्लिते कटनटे = कपलस्थले क्लिन्ने=आर्द्रीकृते येन, तत्तथा तच गंधमदवारिच = गन्धयुक्तमदजलं चेति कर्मधारयः तेन सुरभिजणियगंधे' सुरभिजनितगन्धः = शोभनगन्धवान्, 'करेणुपरिवारिए' करेणु परिवारितः =हस्तिनी परिवारयुक्तः 'उउसमयजणियसोहो' ऋतुसमवजनित शोभः - ग्रीष्म ऋतु क्रीडासुखसम्पन्नः । अथ ग्रीष्मकालो वर्ण्यते- 'काले' उष्णसमये कीदृशे इत्याह-दिणयर करपय डे' दिनकरकर प्रचण्डे = प्रचण्डमार्तण्डकिरणैग्रे 'परिसोसियत स्वरसिहर भी मतर दंसणिजे ' परिशोषित तरुवर शिखर, भीमतरदर्शनीये, तत्र परिशोषितानि तख्वर शिखराणि येन स तथा, अतएव भीमदर्शनीच प्रचण्ड तपवत्वात् दुःसहतापकरत्वाच्च, 'भिंगारवंत भेरवर वे' भृङ्गाररुवद् भैरवरवे-भृङ्गाराणां झिल्लीनामककीटानां रुवतां =शब्दं कुर्वतां भैरवो = भयङ्करो रवःशब्दो यस्मिन् तथा, तत्र, 'णाणाविह पत्तकट्ठे तणकयवरुद्धयपइ मारुयाइद्ध हलदुमगणे' नानाविधपत्रकाष्ठतृणकच वरोद्भूतमतिमारुतादि: क्रीडा के वश से प्रफुल्लित कपोल स्थली को गीला करने वाले मद जल से तुम्हारी गंध निराली बन गई । ( करेणु परिवारिए) हथि नियों के परिवार से युक्त होकर तुम ( उउसमयजणियसोहो ) ग्रीष्म ऋतु काल संबन्धी क्रीडा सुखों का अनुभव करने लगे । (काले दिणयरकपडे ) परन्तु दैवदुर्विपाक से तुम ( बहते दारुणंमि गिम्हे ) उसी वर्तमान भयंकर ग्रीष्म काल में जो सूर्य की प्रचण्ड किरणों द्वारा अति उग्र बना हुआ था ( परिसोसियतरुवर सिहर भीम तर दस णिज्जे ) जिस में वृक्षों की शिखरों तक शुष्क हो चुकी थी और इसी से जो प्रचंड धूप से युक्त होने के कारण दुःसह ताप कर्ता हो रहा था ( भिंगार खंत भेरवर वे ) शब्द करते हुए झिल्ली नामके कीडेंो के भयपद शब्दों से जो व्याप्त था ( णाणाविहपतत्तणकट्टकयवरुद्ध य पदमारु પ્રફુલ્ર થયેલા કપાલ સ્થળને સિંચિત કરનાર મદ્યસ્રવણથી અદ્ભુત થઈ ગઈ હતી. ( करेणुपरिवारिए) हाथणीमाना परिवार साथै तभे ( उउसमयजाणियसोहो ) उनाजानी भोसमने भाटे सुमह अमडीडायामां मासत था गया. ( काले दिणयर करपयंडे) पशु लाग्यनी विषणाथी तभे ( बहते दारुणंमि गिम्हे ) ते बजतना प्रखंड सूर्यना हिरणोथी अथ थह गयेसा ग्रीष्माणमा ( परिसोसिय तरूवर सिहर भीमतरदंसणिज्जे) नेमां वृक्षोना छे! उपरिभाग सुधां सूअर्ध गया हता मेथी ते अतिशय संतप्त ४२नार थ पड्यो हुतो. ( भिंगारखंत भेरवरवे ) तभशंखना लयग्रह शब्दथी व्याप्त थयेला, ( णाणाविहपत्ततणकटुकयवरुद्ध यपइमारुयाइद्धनह
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શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧