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________________ अनगारधर्मामृतवर्ष टीका अ. १.स ३४ मेघकुमारदीक्षोत्सव निरूपणम् सीयं दुरुह दुरुहित्ता मेहस्स कुमारस्स पुव्वदक्खिणेणं सेयं रययामयं विमलसलिलपुन्नं मत्तगयमहामु हाकिइसलाणं भिंगारं गहाय चिट्ट |सू० ३४ ॥ अथ शिविकादिकं वर्ण्यते टीका- 'तणं से' इत्यादि । ततः खलु स श्रेणिको राजा कौडुम्बिक पुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवदत् क्षिप्रमेव भो देवानुमियाः! 'अणेगखंभ यसन्निवि' अनेकस्तम्भशत संनिविष्टाम्=अनेक शतस्तम्भयुक्तां 'लिलट्ठियसालमंजियागं लीला स्थितशालभञ्जिकां - लीलास्थित शालभञ्जिकां लोलया स्थिता = सलीलं वर्तमाना शालभञ्जिका=पुतलिका यस्यां सा तथोक्ता तां 'ईहामिंग उस भतुरगनर मगर वहग वालगकिन्नर - रुरु - सरभचमर- कुंजर - चणलय - पउमलयभत्तिचितं । ईहामृगामतुरगनर मकर - विहग-पालक - किन्नर - रुरुशरभ - चमर कुञ्जर बनलता पद्मलता भक्तिचित्रां- - तत्र ईहामृगो = वृकः, 'भेडिया इति भाषायां, ऋषभः = ३९५ अग ममय सन्निवि) हे देवानुमियो ! तुम शीघ्र ही अनेक सैकडों स्तंभों से युक्त, ( लीलट्ठियसालभंजियागं ) लीलाकरती हुई पुतलियों से विराजित ( ईहा मिगड सभतुरय नरमगर विहगवालग किन्नर रुखसरभचमर कुं जरवणलय उमलयभक्तिचित्तं ) ईहा मृग-भेडिया ऋषभ-वृषभ तुरग--अश्व मनुष्य, मकर -- ग्राह, विहग-पक्षी, व्यालक--स -सर्प किन्नर - व्यन्तर देव विशेष, रूरू- एक जातिका मृग विशेष, शरभ - अष्टापद, चमर - चमरी गाय, कुंजर हाथी, वनलता - एक शाखावाला वृक्ष हे देवानुप्रिय ! तमे सत्वरे से | थलायवाजी, ( लीलडियसालभंजियागं ) डीडा उश्ती भूतजी गोथी सुशोभित, (ईहा मिग- उसम-तुरय-नर मगरविहग- बालग - किन्नर - रुरु सरभ - चमर- कुंजर - वणलय- पउमलय-भत्तिचित्तं ) हामृग, बरु, मजह, घोडो, भागुस, भगर, पक्षी, साथ, हिन्नर (भेड વ્યન્તર દેવતા વિશેષ ) રુરુ (એક જાતના મૃગ વિશેષ ) શરભ, ( એક આઠ પગ वालु आणी विशेष ) यभर, (यभरी गाय), मुं४२, (हाथी) वनलता, (खेड शाखा શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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