SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीकाःअ.१सू. ३१ मातापितृभ्यां मेघकुमारस्य संवादः ३६९ नैग्रन्थप्रवचने किं दुष्करं 'करणयाए' करणतायां-करणे चारित्रधर्माराधने, धीरत्वादिगुणयुक्तस्य न किमपि दुष्करमित्यर्थः, 'तं' तत्-तस्माद् इच्छामि खलु हे मातापितरौ ! युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य यावत् प्रव्रजितुम् ।।९० ३०॥ मूलम्-तएणं तं मेहं कुमारं अम्मापियरोजाहे नो संचाऐंतिबहिं विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहिय आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा, ताहे अकामए चेव मेहं कुमारं एवं क्यासी-इच्छामो ताव जाया एगदिवसमवि ते रायसिरिं पासित्तए। तएणं से मेहे कुमारे अम्मापियरमणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिटुइ । है ऐसे मनुष्य को इसकी आराधना में क्या कठिनता आ सकता हैं। कुछ नहीं। (तं इच्छामि णं अम्मयाओ तुम्भेहिं अब्भुणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पब्वइत्तए) इसलिये हे माता पिता! मैं आपसे श्रमण भगवान महावीर के पास संयम लेने के लिये आज्ञा चाहता हूँ। आप मुझे आज्ञा दीजिये।-बाय और आभ्यन्तर रूप परिग्रह से जो सर्वथा रहित होते हैं वे निग्रंथ कहलाते हैंउन निग्रंथों द्वारा जिसका उपदेश किया जाता है-अथवा उनका जो अभिमत होता है वह ग्रन्थ कहलाता है ।-टीका में जो “ यदि रामा"" यदि च रमा” इत्यादि-इलोकद्वय लिखे हुए हैं उनका अर्थ स्पष्ट है।-॥सूत्र ३०॥ वगेरे गुणोथी यु-त छे; मेवा भासने मामा शुभुश्दी नही शु छ. ( त इच्छामि णं अम्मयाभो तुम्भेहि अन्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवो महावीरस्स जाव पवइत्तए) मेटा भाटे 3 भातापिता ! हुं तमाश पासेथी श्रम र વાન મહાવીર પાસે સંયમ લેવાની આજ્ઞા ચાહું છું. તમે મને આજ્ઞા આપે. બાહ્ય અને અભ્યન્તર રૂપ પરિગ્રહથી જે સંપૂર્ણ રીતે રહિત હોય છે, તે નિગ્રંથ કહેવાય છે. તે નિથ દ્વારા જેને ઉપદેશ કરવામાં આવે છે અથવા તે તેમને જે ઇષ્ટ हाय छ, त नैन्य उपाय छे. टीम " यदि रामा" "यदि च रमा" વગેરે બે કલેકે લખેલા છે, તેમને અર્થ સ્પષ્ટ જ છે. ધ સૂત્ર ૩૦ . શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy